कोरोना का ईलाज Treatment of Corona

इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरा केवल एक धेय है मैं कोविड पॉजिटिव से नेगेटिव होने तक के अपने अनुभव को लोगों के साथ साझा कर सकूं जिससे दूसरों की मदद हो सके. लेकिन मैं एक बात स्पष्ठ कर देना चाहता हूँ की मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ, और न ही इस पोस्ट के माध्यम से मैं किसी को कोरोना के ईलाज के सम्बन्ध में कोई सलाह दे रहा हूँ. हर किसी का शरीर अलग होता है तथा एक ही बीमारी अलग अलग लोगों के साथ अलग अलग तरह से व्यवहार करती है. इसलिए कृपया इस पोस्ट को केवल मेरा अनुभव ही समझे और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं. हाँ एक व्यक्तिगत सलाह जरूर देंगे की यदि आपको जरा भी आशंका है की आप कोरोना पॉजिटिव हो सकते हैं तो बिना देरी के अपना टेस्ट करवाएं एवं डॉक्टर से उचित सलाह ले कर ही कोई भी काम करें.

मेरे लिए कोरोना पॉजिटिव होना एक आम इंसान के कोरोना पॉजिटिव होने से बहुत ज्यादा खतरनाक था क्योकि मैं अपने लीवर ट्रांसप्लांट के बाद से immunosuppressive दवाएं लेता हूँ जो मेरे शरीर के रोग से लड़ने की क्षमता को कमजोर रखता है. जहाँ कोरोना के ईलाज के लिए सभी डॉक्टर केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखना ही इस महामारी का ईलाज बताते हैं वहीँ मजबूरन मैं अपनी रोक प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करने की दावा लेता था. और इस दवा के लेने की वजह से मुझे ये मालूम था की मेरे लिए कोरोना से लड़ना किसी दुसरे आम इन्सान की तुलना में थोडा कठिन होने वाला था. कोरोना जांच की रिपोर्ट आने के पहले ही मुझे इस बात का अंदाज़ हो चूका था की मैं कोरोना पॉजिटिव था क्योकि मेरे सूंघने की शक्ति बिल्कुल क्षीण हो चुकी थी.

जैसे ही मुझे ये अहसाह हुआ था मैं कोरोना पॉजिटिव हो सकता हूँ मैंने सर्वप्रथम अपने आपको बाकी के परिवार के सदस्यों से पूरी तरह से अलग कर लिया था. जब रिपोर्ट आ गयी उसके बाद सबसे पहले मैंने अपने लीवर के डॉक्टर को ILBS हॉस्पिटल में सूचना दी. उन्होंने बोला की immunosuppressive दवाएं बंद कर दो क्योकि कोरोना के ईलाज में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी चाहिए और मेरी दवाएं उसको कमजोर रखने के लिए हैं. ये मेरे लिए बहुत विचित्र स्थिति थी क्योकि यदि immunosuppressive दवाएं बंद होती हैं तो मेरे ट्रांसप्लांट हुए लीवर के लिए घातक है और यदि वो दवाएं लेते रहे तो कोरोना के ईलाज के लिए घातक.

उन्होंने मुझे कोरोना के ईलाज से सम्बंधित कुछ दवाएं भी दी. मेरे डॉक्टर का कहना था की कोरोना के लिए कोई विशेष दवा नहीं बनी है, व्यक्ति का खुद का शरीर ही कोरोना से लड़ता है. साथ में जो दवाएं दी जाती हैं वो केवल शरीर की आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए दी जाती हैं जैसे मल्टीविटामिन, जिंक और विटामिन C. मुझे मात्र यही 3 दवाएं दी गयी थी, इसके अलावा कुछ भी नहीं. इसके साथ में मुझे दूध-हल्दी, दिन में कम से कम 4 बार भाप लेना, प्राणायाम, सांस लेने से सम्बंधित दूसरे व्यायाम और स्पाईरोमीटर से दिन में 3-4 बार व्यायाम करने के लिए बोला गया. साथ में अपना पल्स रेट और ऑक्सीजन लेवल भी देखते रहने को बोला गया.

मेरे डॉक्टर ने बोला की घर पर आराम करना है, संतुलित भोजन करना है और यदि सांस लेने में तकलीफ होती है तो तुरंत किसी पास के कोविड हॉस्पिटल में एडमिट हो जाना है. डॉक्टर ने ये भी बोला की यदि ऑक्सीजन लेवल 95 से नीचे होता है तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. मुझे ऑक्सीजन लेवल का अंदाज़ पहले से था क्योकि अपने लीवर के ईलाज के समय मैं काफी समय तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर था और मुझे इस बात का अंदाज़ था की अगर ऑक्सीजन लेवल 90 तक भी पहुच जाता है तो उसमे हॉस्पिटल की तुरंत जरूरत नहीं है. इसके अलावा कुछ स्वास से सम्बंधित व्यायाम भी मुझे काफी पहले से मालूम थे जिसको करने से शरीर का ऑक्सीजन लेवल बढाने में मदद मिलती है जैसे की Proning या कुछ योग एवं प्राणायाम.

प्रोनिंग एक प्रकार की बैठने, लेटने और सांस लेने की विशेष अवस्था है जिसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा सांस फेफड़ों में भरी जा सके ताकि शरीर का ऑक्सीजन लेवल बना रहे. प्रोनिंग और योग द्वारा ऑक्सीजन लेवल बढाने की प्रक्रिया लगभग एक सी ही है बस करने का तरीका थोडा अलग है. प्रोनिंग में भी एक विशेष अवस्था में बैठ कर या लेट कर फेफड़ों में ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन भरने की बात की जाती है और योग प्राणायाम तो पूरी तरह से सांस भरने और छोड़ने पर आधारित प्रक्रिया है. लेकिन इनमे से किसी को भी करने के पहले मुझे ऐसा लगता है की किसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए. योग प्राणायाम से ऑक्सीजन लेवल बनाये रखने के लिए बाबा रामदेव भी कई आसनों और प्राणायाम बताते हैं जिसको इस विडियो में देख सकते हैं-

मेरे पॉजिटिव होने के कुछ दिन बाद से एक एक कर के मेरे घर के सभी सदस्य कोविड पॉजिटिव हो गए और हम सभी लोगों ने वहीँ दवाइयां ली जो मेरे डॉक्टर ने मुझे बताई थी और वही दिनचर्या का पालन किया जैसा डॉक्टर ने बोला था. मेरे बड़े भाई ने बनारस के किसी डॉक्टर के द्वारा बताई गयी दवाइयां ली थी जो मेरे दवाइयों से थोड़ी अलग थी. बनारस में डॉक्टर मल्टी विटामिन, जिंक, विटामिन C के साथ में Doxycycline, Montelukast and Fexofenadine और Ivermectin भी दे रहे थे जबकि मैंने केवल मल्टीविटामिन, जिंक और विटामिन C ही लिया था. अंततः 15 दिन बाद मैंने अपना RT PCR टेस्ट करवाया और रिपोर्ट नेगेटिव आ गई और एक एक कर के परिवार के सभी सदस्य भी नेगेटिव हो गए.

पॉजिटिव से नेगेटिव होने के इस दौर में जो महत्वपूर्ण बातें नोटिस किया जिससे मुझे बहुत मदद मिली वो थी-

  • जैसे ही शंका हुआ मैंने तुरंत अपना टेस्ट करवा लिया जिससे की मुझे ये पता चल गया की मुझे कोविड का इन्फेक्शन है जिससे मुझे मेरा ईलाज सही समय पर शुरू करने में मदद मिली. आज सभी का ये मानना है की यदि कोविड के इन्फेक्शन का पता सही समय पर चल जाये तो इससे लड़ाई आसान हो जाती है. नहीं तो अगर ये इन्फेक्शन बढ़ गया तो फिर दुनिया जानती है की इसकी कोई दवा नहीं है. इसलिए अगर जरा सा भी शंका हो की कोविड का इन्फेक्शन हो सकता है तो तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए और डॉक्टर के निर्देशन में अपना ईलाज शुरू कर देना चाहिए.
  • अपने आपको सबसे अलग कर लेना और घर पर भी रहना बहुत महत्वपूर्ण है क्योकि कोविड शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है और यदि उस समय कोई घर के बाहर आता जाता है या दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आता है तो उसे दूसरा इन्फेक्शन भी आने का खतरा होता है और साथ ही साथ वो अपना इन्फेक्शन दूसरे को भी दे देता है क्योकि कोरोना बहुत ही जबरदस्त संक्रामक वायरस है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बहुत आसानी से फ़ैल जाता है. कई वैज्ञानिक तो यहाँ तक बोल रहे है की ये हवा से फैलने वाला वायरस है इसलिए अपने आपको आइसोलेट कर लेने में ही समझदारी है.
  • भाप लेना बहुत मदद किया – मेरे डॉक्टर ने मुझे दिन में 3-4 बार भाप लेने के लिए बोला था जिसका मुझे बहुत फायदा महसूस हुआ. शायद इसी वजह से मुझे खांसी या खरास की दिक्कत नहीं हुई. भाप लेने के लिए शुरू के 2-3 दिन मैंने घर पर ही बड़े बर्तन में पानी गर्म कर के भाप लिया लेकिन उसके बाद एक छोटी मशीन खरीद लिया जिससे काम और आसान हो गया. भाप लेने सम्बंधित भी कुछ नियम है जिसका पालन करना चाहिए.
  • स्पाईरोमीटर – स्पाईरोमीटर एक छोटा सा यन्त्र होता है जिसका इस्तेमाल फेफड़ों और सांस सम्बंधित व्यायाम करने के लिए किया जाता है. इसमें बंद चौकोर डिब्बे में 3 बाल होती हैं जिससे एक पाइप जुडी होती है. उसी पाइप से सांस अन्दर खीचने पर वो बालें ऊपर की और उठती हैं. जितनी जोर से सांस खींचा जायेगा उतनी ज्यादा बाल ऊपर उठती है. ये फेफड़ों के लिए बहुत ही बेहतरीन व्यायाम है. मेरे डॉक्टर ने मुझे ये व्यायाम दिन में 4-5 बार करने के लिए बोला था.
  • दूध हल्दी का सेवन करना हमेशा से ही अच्छा माना गया है जिसको आयुर्वेद और अंग्रेजी डॉक्टर दोनों लोग मान्यता देते हैं. दूध हल्दी से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है जो की कोरोना से लड़ने का एकमात्र उपाय है. इसका सेवन करने की सलाह भी मुझे मेरे डॉक्टर ने दिया था. इसके साथ में हल्का, सुपाच्य और स्वास्थ्कारी भोजन (घर का बना हुआ ज्यादा तेल, घी, मसाले वाला नहीं) करने की सलाह दी गयी थी.

कुल मिलाजुला कर मेरा अनुभव ये रहा की यदि कोरोना का इन्फेक्शन सही समय पर पता चल जाये और यदि व्यक्ति डॉक्टर की सलाह माने तो इस इन्फेक्शन को ख़त्म करने में बहुत मदद मिल सकती है. इसलिए यदि जरा सी भी शंका हो तो तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए. दूसरी बहुत महत्वपूर्ण बात ये की इस इन्फेक्शन को लेकर घबराना नहीं चाहिए. मैंने देखा है की लोग कोरोना का नाम सुनते ही बहुत ज्यादा डर जाते हैं. जहाँ तक हो सके सकारात्मक रहने का प्रयास करना चाहिए, घर पर हैं तो अपने पसंद की फिल्म देखिये, किताबें पढ़िए….कोई भी काम जो बिना किसी दूसरे से मिले जुले हो सकता है. जहाँ तक हो सके हॉस्पिटल से दूरी बनाने में ही समझदारी है.

मुझे ऐसा लगता है की यदि मेरे जैस आदमी जिसका मात्र 5 महीने पहले लीवर ट्रांसप्लांट हुआ हो, जो immunosupressive दवाएं लेता हो अगर वो इस वायरस को परास्त कर सकता है तो कोई भी व्यक्ति सही निर्णय लेकर कोरोना को परास्त कर सकता है. जैसा की मैंने शुरू में लिखा है की ये लेख मेरा व्यक्तिगत अनुभव मात्र है और इससे ज्यादा कुछ नहीं. मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ ना ही मुझे कोरोना या उससे सम्बंधित कोई वैज्ञानिक जानकारी है. इसलिए इस लेख को एक सच्ची कहानी से ज्यादा कुछ भी न समझे. कुछ भी परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और उनके निर्देशानुसार ही अपना इलाज करें.

वाराणसी में कोरोना टेस्ट Corona test in Varanasi

कोरोना महामारी को शुरू हुए अब लगभग एक साल से ज्यदा बीत गया है और भाग्यवश मैं इस वर्ष मार्च तक इस इन्फेक्शन से बचा ही रहा लेकिन अंततः 18 मार्च को मैं भी Covid पॉजिटिव हो ही गया. जबसे कोविड आया है तबसे अमूमन लोग सफ़र करने से बच रहे हैं लेकिन मुझे लीवर ट्रांसप्लांट के बाद से रेगुलर फॉलोअप के लिए महीने में एक बार ILBS हॉस्पिटल, दिल्ली जाना ही होता है. मार्च में मेरा फॉलोअप 17 तारीख को था जिसके लिए मैं 15 तारीख को ही दिल्ली पहुच गया था. बनारस से दिल्ली का सफ़र मैंने ट्रेन से तय किया था और 15 तारीख को ही हॉस्पिटल में अपना कोविड का जांच करवा लिए थे जिसमे मेरी रिपोर्ट नेगेटिव थी तथा ये रिपोर्ट 3 दिन के लिए मान्य होती है. बिना कोविड नेगेटिव की रिपोर्ट के कोई भी ILBS में डॉक्टर से नहीं मिल सकता है.

अंततः मैं 17 तारीख को अपने डॉक्टर से मिल कर 18 तारीख को बनारस वापस आ गया. उस समय तक मुझे कोई परेशानी नहीं थी. 18 तारीख को मुझे कुछ जरूरी काम होने की वजह से दिन भर बहुत ज्यादा व्यस्तता थी और मैं बिना किसी दिक्कत परेशानी के दिन भर काम किया. अंततः शाम को खाना बनाते मैंने एक बात नोटिस किया की उस रोज मुझे सब्जी में से मसलों की कोई सुगंध नहीं आ रही थी एक बार तो मैंने सोचा की शायद मैं सब्जी में मसाला डालना ही भूल गया जिसकी वजह से सब्जी में कोई सुगंध नहीं है लेकिन फिर मैंने सोचा की अगर मैंने मसाला नहीं भी डाला है तो भी कोई तो सुगंध होनी चाहिए. मैंने कई बार सब्जी का सुगंध लेनें का कोशिश किया लेकिन मैं कुछ भी सूंघ नहीं सकता था.

उसके बाद मैंने परफ्यूम सूंघने का कोशिश किया लेकिन मेरे लिए उसमे भी कोई सुगंध नहीं था. फिर उसके बाद अपने कमरे में रूम फ्रेशनर छिड़क कर देखे लेकिन उसमे भी कोई सुगंध नहीं था. तब मैंने सोचा की शायद ट्रेन में सफर के दौरान मुझे सर्दी-जुकाम हो गया है जिसके लिए मैंने गर्म पानी में विक्स मिला कर भाप लेने का कोशिश किया लेकिन तब भी वही परिणाम – मुझे गर्म पानी में मिले विक्स तक की सुगंध नहीं आ रही थी और तब मुझे अंदाज़ हो गया था की कुछ तो गड़बड़ है. उसी दम मैं अपने परिवार के लोगों से अलग हो गया और अपने आप को एक अलग कमरे में आइसोलेट कर लिया. अगले दिन सुबह होते ही जानकारी इकठ्ठा करने पर मालूम चला की BHU और कुछ एक सरकारी अस्पतालों में कोविड की फ्री जांच हो रही है.

सर्वप्रथम मैंने मेरे घर के पास भेलूपुर में स्थित विवेकानंद सरकारी अस्पताल में संपर्क किया तो उस दिन वहां टेस्ट नहीं हो रहा था क्योकि उस दिन उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से स्वास्थ मेले का आयोजन किया गया था और वही पर सारे कर्मचारी व्यस्त थे. मुझे वहां से कबीरचौरा हॉस्पिटल जाने की सलाह दी गयी. फिर मैं कबीरचौरा हॉस्पिटल गया लेकिन वहां की भयावह स्थिति देखकर मुझे वहां टेस्ट करवाने की हिम्मत नहीं हुई. सर्वप्रथम तो कोई ये भी बताने वाला नहीं था की वहां टेस्ट हो कहाँ रहा है. बहुत खोजने पर हॉस्पिटल के निकासी द्वार पर एक पीपल के पेंड के नीचे दो लोग बैठे दिखे जो covid का टेस्ट कर रहे थे. न ही उनमे से किसी ने PPE किट पहना था और नहीं किसी प्रकार के covid प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा था.

ये सब देखकर मैं वहां से बिना टेस्ट करवाए ही लौट आया. मैंने सोचा की किसी प्राइवेट लैब में ही टेस्ट करवा लूँगा. सबसे पहले मैं Pathkind लैब में गया जहाँ मुझे बोला गया सैंपल लेने के 24 घंटे बाद रिपोर्ट आएगी. फिर मैं Lalpath गया जहाँ और विचित्र स्थिति थी. वहां मुझसे बोला गया की आप 900 रूपये जमा कर के जाइए और कल शाम को हमारा आदमी आपके घर जायेगा सैंपल लेने और फिर उसके 24 घंटे बाद रिपोर्ट आएगी . मैंने बोला की मैं खुद अपनी जांच करवाना चाहता हूँ और उनके लैब में उपलब्ध हूँ तो फिर मेरा सैंपल तुरंत क्यों नहीं लिया जा सकता. तो वो लोग बोले की कोविड का सैंपल घर से ही लिया जायेगा और वो भी कल, कोई दूसरा रास्ता नहीं. मुझे लगा की यदि 2 दिन इंतज़ार ही करना है तो फिर मैं फ्री वाली जांच ही क्यों न करवा लूं .

इसके बाद मैंने बीएचयू में काम करने वाले अपने एक रिश्तेदार को मदद के लिए फ़ोन किया. उसने बोला की मैं शाम 4बजे के बाद आकर कभी भी बीएचयू में टेस्ट करवा सकता हूँ. तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले अलोक भईया (जो की स्वास्थ विभाग के कर्मचारी हैं) उनका फोन आया और वो बोले की स्वास्थ मेला में भी कोविड का जांच हो रहा है और मुझे वहां जाना चाहिए. मैं तुरंत स्वास्थ मेला में गया जहाँ कोविड टेस्ट कराने की भी सुविधा थी और वहां मेरा रैपिड एंटीजन और RTPCR दोनों टेस्ट हो गया. रैपिड एंटीजन टेस्ट को एक किट पर करते हैं तथा उसकी रिपोर्ट तुरंत आ जाती है. मेरा रैपिड टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आई जो की एक बहुत बड़ा सुकून देने वाली खबर थी. लेकिन उसी समय अलोक भईया बोले की रैपिड टेस्ट पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर सकते, कई बार इसकी रिपोर्ट निगेटिव आती है लेकिन RTPCR में पॉजिटिव रिपोर्ट आ जाती है.

स्वास्थ मेला में टेस्ट करा कर वहां से थोड़ी दूर चलते ही मेरे रिश्तेदार का फ़ोन आ गया और वो बोला की बीएचयू आ जाइए. फिर वहां से सीधे मैं बीएचयू चला गया और वहां भी RTPCR का सैंपल दे आया. मेरे पहुचने से पहले ही टोनी मेरा रजिस्ट्रेशन करा कर रखा था जिसकी वजह से मुझे लाइन में नहीं लगना पड़ा. मेरे वहां पहुचते ही तुरंत मेरा टेस्ट हो गया और मुझे बताया गया की कल सुबह तक मैं अपनी रिपोर्ट ऑनलाइन चेक कर सकता हूँ. बीएचयू में चीजें ज्यादा बेहतर समझ में आई क्योकि उनके काम करने के तरीके से ही लग रहा था की कम से कम उनलोगों को ये पता था की वो क्या कर रहे हैं नहीं तो कबीरचौरा हॉस्पिटल या स्वास्थ मेला में तो ऐसा लग रहा था की किसी को सड़क से उठा कर बैठा दिया गया है जिसको खुद नहीं मालूम की उसको करना क्या है.

बीएचयू में टेस्ट करने वाले लोग उचित तरीके से PPE किट पहने हुए थे, फेस मास्क लगाये हुए थे, वहां एक दूसरे के बीच दूरी बनवाई जा रही थी और दूसरे नियम कानून का भी पालन करवाया जा रहा था. कुल मिलाजुला कर स्वास्थ मेला, कबीरचौरा हॉस्पिटल, Pathkind लैब और Lalpath लैब से बेहतर अनुभव बीएचयू का रहा. मुझे बीएचयू से ही एक वेबसाइट का लिंक दिया गया था (http://labreports.upcovid19tracks.in/) जहाँ जा कर मैं अपना रिपोर्ट चेक कर सकता था. मुझसे हॉस्पिटल में बोला गया की मैं 24 घंटे बाद वेबसाइट पर अपनी रिपोर्ट देख सकता हूँ. उस वेबसाइट को खोलने पर एक ऑप्शन था जिसमे वही मोबाईल नंबर डालना था जिसको टेस्ट करवाते समय रजिस्टर करवाया गया था क्योकि उसी मोबाइल नंबर पर एक OTP आता है जिसको वेबसाइट पर डालना पड़ता है जिसके बाद रिपोर्ट देख सकते हैं.

कुल मिलाजुला आसान प्रक्रिया थी और हमको लगता है की कोई भी आसानी से ये टेस्ट फ्री में बीएचयू में करवा सकता है. मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव थी, मतलब मैं कोरोना संक्रमित था जिसका मतलब की अब मुझे कम से कम अगले 14 दिनों तक घर में रहना था तथा अगली बार का टेस्ट भी दो सप्ताह बाद ही करवाना था. मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के अगले दिन ही मुझे स्वास्थ विभाग से फ़ोन आया, उन्होंने मेरे परिवार के सदस्यों के बारे में पुछा और बोले की मुझे अपने पूरे परिवार का टेस्ट करवाना चाहिए. उस दिन शनिवार था इसलिए उन लोगों ने बोला की सोमवार को स्वास्थ विभाग से कुछ लोग मेरे घर जायेंगे और घर पर ही सबका टेस्ट किया जायेगा लेकिन मैं इतना इंतज़ार नहीं करना चाहता था. मेरे अपने परिवार के सदस्यों को भी रविवार को ही बीएचयू भेज कर सबका टेस्ट करवा दिया जिसकी रिपोर्ट भी शाम तक आ गयी.

अंततः 12 बाद जब मुझे स्वास्थ में आराम महसूस होने लगा तब मैंने सोचा की दोबारा से एक बार और टेस्ट करवा लें लेकिन इस बार टेस्ट करवाने के अनुभव पहली बार से बिलकुल अगल था. मैंने पहला टेस्ट 19 मार्च को करवाया था और उस दिन केवल 12 लोगों की पॉजिटिव रिपोर्ट आई थी लेकिन अगले दस दिनों ही इन्फेक्शन इतना तेजी से फैला की प्रति दिन 1000 से ज्यादा लोगों की पॉजिटिव रिपोर्ट आने लगी. मैं अपना टेस्ट करवाने के लिए शाम 6 बजे बीएचयू पंहुचा तो मुझे बोला गया की आप शाम 8 बजे आइये, अभी रजिस्ट्रेशन काउंटर बंद है. फिर मैं शाम 8.30 पर गया तब मुझे बोला गया की रात दस बजे आइये उसी समय रजिस्ट्रेशन भी होगा और टेस्ट भी हो जायेगा.

अंततः रात 10 बजे पहुचने पर भी वहां न ही रजिस्ट्रेशन हो रहा था और न ही टेस्ट. मेरी ही तरह काफी लोग वहां लाइन में खड़े थे. मुझे सबसे बड़ा आश्चर्य ये देख कर हुआ की कई लोग उन रोगियों को भी स्ट्रेचर पर लेकर आये थे जो की पहले से ही बीएचयू में किसी रोग की वजह से भर्ती थे. मुझे ये नहीं समझ में आ रहा था की जो रोगी पहले से ही हॉस्पिटल में भर्ती है उसको टेस्टिंग सेण्टर तक लाने की क्या जरूरत? उनका टेस्ट तो उनके बेड पर ही किया जा सकता था और एक बीमार आदमी को स्ट्रेचर पर लेकर कोविड टेस्टिंग सेण्टर ले कर आना उस पेशेंट के लिए भी खतरा हो सकता है. क्या पता वो निगेटिव हो लेकिन वहां टेस्टिंग सेंटर पर किसी पॉजिटिव व्यक्ति के सम्पर्क में आने से पॉजिटिव हो जाये.

खैर, अंततः रात 10.45 पर रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ और सैंपल देते देते रात का 11.30 बज गया. अगले दो दिनों तक ऑनलाइन रिपोर्ट भी नहीं आई तब मैं खुद बीएचयू गया और वहां पता चला की चूँकि इधर बीच बहुत ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं और बहुत ज्यादा लोग टेस्ट करवाने आ रहे हैं इसलिए रिपोर्ट आने में 3 दिन तक लग जा रहा है. अंततः तीसरे दिन मेरी रिपोर्ट आई और मेरी रिपोर्ट दोबारा से पॉजिटिव ही था. मुझे नहीं मालूम ये सच है या नहीं लेकिन मुझसे कई लोगों ने बोला की यदि आप की रिपोर्ट एक बार पॉजिटिव आ गयी तो अगले 14 दिनों तक जानबूझ कर नेगेटिव रिपोर्ट नहीं दी जाती ताकि पेशेंट घर में ही रहे. खैर, मुझे इस बात पर विश्वास नहीं था. मुझे ऐसा लगता है की यदि कोई पॉजिटिव है तभी उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आएगी.

मैंने पंद्रहवे दिन फिर से अपना टेस्ट करवाया और इस बार स्थिति और गड़बड़ थी. अबतक औसतन रोज 2000 बनारस में पॉजिटिव हो जा रहे थे और बीएचयू पर बहुत ज्यादा लोड था. पहले की तुलना में कई गुना लोग टेस्ट करवाने के लिए पहुच रहे थे. पहले जहाँ औसतन एक-डेढ़ घंटे में टेस्ट हो जाता था इस बार तकरीबन 3 घंटे लगा और रिपोर्ट भी 3 दिन बाद आई. कुल मिलाजुला कर जितना अच्छा अनुभव शुरुआत में बीएचयू में था वो उतना ही बुरा हो गया. मैंने उसी दिन एक सरकारी अस्पताल में भी अपना सैंपल दिया था जिसकी रिपोर्ट कभी नहीं आई, पता करने पर हमेशा बोला गया की लोड बहुत ज्यादा है इस वजह से रिपोर्ट नहीं आ रही है.

रिपोर्ट लेट होने का कितना घातक परिणाम हो सकता है इस बात का अंदाज़ भी लगा पाना मुश्किल है. यदि कोई टेस्ट करवाता है और उसकी रिपोर्ट 2-3 दिन बाद आती है तो उस बीच में वो कई लोगों को इन्फेक्शन फैला सकता है या बीमारी का पता न चल पाने की स्थिति में हालत और ख़राब हो सकती है. कुल मिलाजुला कर आज की परिस्थिति को देखते हुए किसी प्राइवेट लैब में ही टेस्ट करवा लेना बेहतर है, कम से कम वो रिपोर्ट तो सही समय से देंगे. बस अंतर इतना है की सरकारी अस्पतालों में ये जांच फ्री है और प्राइवेट लैब में 900 रूपये का खर्च है. लेकिन मुझे ऐसा लगता है की यदि पैसा है तो वर्तमान स्थिति को देखते हुए प्राइवेट लैब में ही जांच करवा लेनी चाहिए ताकि सही समय से ईलाज तो शुरू हो सके.

कोरोना पॉजिटिव से निगेटिव होने तक के मेरे अनुभव से मैं अब ये जरूर कह सकता हूँ की यदि बनारस में कहीं टेस्ट कोविड का टेस्ट करवाना है या तो बीएचयू में करवाना चाहिए या फिर किसी अच्छे प्राइवेट लैब में. यदि कोई स्वास्थ सम्बंधित कोई ख़ास दिक्कत नहीं आ रही है तो बीएचयू में जा सकते हैं लेकिन यदि जरा भी दिक्कत परेशानी हो तो बिना समय व्यर्थ किये किसी प्राइवेट लैब में जांच करवा कर तुरंत डॉक्टर के निर्देशन में अपना ईलाज शुरू कर देना चाहिए. लेकिन मुझे ये भी मालूम है की हर किसी के बस की बात नहीं है की वो 900 रूपये लगवा कर टेस्ट करवा पायेगा इसलिए अंतिम उम्मीद तो सरकारी व्यवस्थाओं से ही बनती है और मुझे उम्मीद है की आने वाले समय में सरकारी व्यवस्था और दुरुस्त होगी जिससे ज्यादा से ज्यादा आम लोग अपना टेस्ट करवा सकें और इस वैश्विक महामारी से लड़ने में आगे आ सकें.

Traveller’s Choice Award 2020 for Groovy Tours

I have been using Tripadvisor to promote my tour business since 2014 which gives me most of my business. Based on the ratings and reviews given by the customers Tripadvisor choses certain companies every year and gives them an yearly award. All the way starting from 2014 I started receiving Certificate of Excellence award, then they gave me Hall of Fame award in the year 2018 (Hall of Fame is given to the service providers who get Certificate of Excellence continuously five years in a row) and now this year I have been given Traveller’s Choice Award for the year 2020. It is always a great feeling to see that your guests appreciate your services and it becomes more special when it happens again and again every year 🙂 Thanks for all your support, Jai Hind!

Inhuman behavior of doctors at BHU

The hospital at BHU is the biggest ray of hope for millions of people from Purvanchal, Bihar, Madhya Pradesh, Chattisgarh, Nepal and many other places in India. Patients from all of these places come to BHU to get medical treatment because it is the biggest hospital of this region but the management, staffs and doctors are so corrupt and cruel that they have become demons, no humanity at all. The people from Varanasi themselves have the feeling that BHU hospital has the best doctors and other medical facilities but if you do not know people personally there then don’t go. If you know people then things are easy otherwise its a serious challenge to get anything done at that hospital.

Everything is super difficult starting from registration till getting treatment, buying medicines or even getting subsidy which is the right of the patients. Lets start from the beginning, the first process is getting registration which mean you will have to be in a queue as there is no process of doing it online and the queue is so big that you might have to spend an hour or two just standing in the line. Second step is seeing the doctor which means again huge queue and corrupt system. If you know someone at the OPD then doesn’t matter how late you show up or even if you have registration or not, you will go and see the doctor directly but the people who showed up early, were in the queue waiting for their turn will have to wait.

At BHU OPD usually there is one senior doctor and may be 5-6 junior ones. Junior doctors are the ones who see the patients first and if they feel like needing help of the senior doctor only then they discuss the case with the senior one but again if you know somebody then senior doctor will see you first which really hurt others. If the doctor suggests some kind of blood test or CTscan or MRI then again problem. All the facilities are available at the hospital for cheap cost but the queue is so big that in case of an emergency it is impossible to wait for your turn. The appointment for CTscan or MRI could be even a week or two. In this case most of the people pay a higher price and get the test done at some private center where the doctors get commission.

If there is any emergency and the patient has to be admitted in the hospital then they don’t have beds available. Actually they always have beds available but only if you know someone working at BHU. It has happened with so many people whom I know personally that they were denied the admission first but when they approached someone powerful then immediately the patient was admitted otherwise the patient has to lay down on the ground in unhygienic condition while the treatment is going on. Forget about getting a room, it is a serious challenge to even find a stretcher. You will always see patient’s attendants running around here and there looking for a vacant stretcher. And when the patient is admitted then the real drama of commission business starts and I know it very well that it all happens with involvement of BHU staffs.

Actually different people who have medicine business outside BHU premises start approaching the attendants of the patients asking them to come to there shop and buy medicines from them. In exchange of it they promise discount which is nothing other than a scam because hospital pharmacy is a lot cheaper than any discounted rate offered by these outside shops. There is already a pharmacy inside the hospital premises where they provide subsidized medicines. In a lot of cases doctors themselves ask the patients to buy the medicine from some shop outside the hospital because they get huge commission. My personal most recent experience of such case was only about an year ago when a lady in my neighborhood went to the BHU to get treatment for her breast cancer. 

Doctors did biopsy and confirmed that she had 3rd stage of breast cancer and she needed urgent treatment. They recommended her chemotherapy first because her tumor was very big. The doctor herself asked the patient to go to a particular shop outside the BHU campus and bring the medicines from there only. But there was already an AMRIT store at the hospital which is a program started by Modi government in the year 2015 which sells cancer and heart related diseases medicine and implants for 50 to 90% cheaper than the market rate. Statistics indicate that Indians diagnosed with cancer are 700,000 every year. About 2.8 million people have cancer at any point of time and half a million die of the disease each year. The annual figure of women being diagnosed with breast cancer in India is 145,000, according to the World Health Organisation.

A significant number of patients (nearly over 50 per cent) stop visiting hospitals after two or three cycles of chemotherapy due to unaffordable costs. Hence, the aim to reduce the expenditure incurred by patients on treatment of cancer and heart diseases, has launched the Affordable Medicines and Reliable Implants for Treatment (AMRIT) program. The patient went to the shop recommended by the doctor and asked the cost of the medicine. The shop owner said it would cost them around Rs. 17-18,000 which sounded very expensive because I used to pay around 5000 at TATA memorial hospital, Mumbai for my mother’s breast cancer treatment so I suggested the patient to inquire about the cost at AMRIT store inside the hospital.

The patient went there and was shocked to see that the same medicine’s cost at AMRIT store was around Rs. 4000. The patient came from a very poor family back ground and I was helping them to get some financial aid from the government but it takes some time and he she needed urgent help. So she decided to go for the treatment with whatever savings she had. They bought the medicines from AMRIT store but before starting the therapy they went to the doctor again to show her all the medicines because they could not believe that there would be so big difference of cost between the shop outside and AMRIT store at the hospital. The doctor looked at the medicines and said that everything was all right but suddenly asked for the receipt of the medicine.

They showed the receipt to the doctor and as soon as she saw the receipt of AMRIT she got super angry and started shouting at the patient. She was upset about why did they buy the medicine from AMRIT store when she had asked them to buy it from somewhere else. They explained the reason that it was almost 4 times cheaper at the AMRIT and they come from a very poor background that it was impossible for them to even spend that Rs. 4000 at AMRIT store, forget about paying 17,000 at some other store. But in any case why would I pay 17,000 for the same thing which costs me 4000?. But that cruel inhuman doctor did not want to hear anything. She threw the medicines away and told the patient that if she can not bring the medicine from that particular shop, where she wanted them to buy it from, then she can go anywhere she wants or start the treatment by themselves.

They were crying and requesting the doctor to start the treatment as they could not afford the medicine from outside but no result. It was not only my patient but several others also had the same problem. They were all complaining about the same thing. Now we had no idea about what to do because she needed urgent treatment. There was another cancer hospital in Varanasi run by Indian Railways where we did not really want to go at first because BHU had better facilities but there was no other way. Finally we decided to go to the Railway hospital, explained them all of the problems and the doctors there were so nice that they accepted the patient. They also agreed to use the medicines brought from AMRIT store but they were also shocked to hear the story.

Somehow her treatment started at the Railway hospital. Every time she needed a chemo we would buy it from AMRIT store at BHU but get the therapy at the Railway hospital. But sometimes you are too unlucky or maybe unlucky for a while with better future waiting for you. Only after three Chemos the Railway hospital was closed temporarily because TATA Memorial center from Mumbai had taken over it and they needed sometime to develop the hospital infrastructure and other facilities as per their own standards. TATA hospitals are very good, they have proper hospital management system, good doctors and subsidized medicines. On one hand we were sad that my patient’s treatment was going to be stopped but on the other hand it was also a happy news that future would be better.

All of the cases of Railway hospital were transferred to BHU and since it was done on the government level we did not face the same problem again. Rest of the Chemos were done at BHU and they also accepted medicines bought from AMRIT store. Now just imagine the cruelty of that doctor who had refused to treat my patient only because she could not afford to buy the medicines from the shop preferred by the doctor. And the reason why they send the patients to certain shops only because they get commission. Patients life, suffering, pain…. nothing matters to them. The only thing that matters to them is money. Being a local of Varanasi at least I could even think of other options but just think about the situation of those poor people who come from far away places……Just impossible to even imagine their situation.

Anyways, the reason why I am writing this post is because the media reported today about a similar case that happened at BHU. The report said that a patient from Aurangabad, Bihar who needed cardiac surgery was admitted at BHU in May 2017. Since they came from a very poor family they had applied for government help and the government had already sanctioned Rs. 1,75,000 for their treatment. Usually this kind of money is directly transferred to the hospital or the patient can get treatment, present the bills issued by authorized government pharmacy center and get the refund. The patient showed the documents stating that the government had approved 1,75,000 for the patient but again the doctor denied the treatment. He started making all the fake stories and asked the patient’s family to deposit Rs. 2,50,000 at a particular shop outside the hospital.

The patient’s family did not have that much of money so they mortgaged their agricultural land and somehow arranged money and gave it to the shop owner. The operation cost at BHU is almost nothing, I don’t know the present rate but I still remember that I had deposited only Rs. 500 for my cousin’s heart valve surgery around 10 years ago. All the major expenses are medicine cost. Finally the surgery happened and the patient was discharged from the hospital. They went to that medicine shop asking for the receipt of the medicines so that they could get a refund from the government but they gave them receipt of only Rs. 1,80,000 whereas they had given Rs 2,50,000. The family lodged a complaint against it to the Medical Superintendent of the hospital.

The MS called the shop owner and asked him to return rest of the 70,000 which he agreed but later denied but never returned that 70,000. Now another problem is that the patient’s family can get refund only if they can present the receipt issued by AMRIT stores because all the medicines at AMRIT stores are already highly subsidized but the doctor had sent the patients somewhere else and it was again done only because the doctor must have been getting commission by sending patients to that particular pharmacy. When I hear such stories, I don’t know what to say, the only thing I can say is that such people are monsters in human face. Just imagine the situation of that patient’s family.

They had to go to the government because they did not have money, they had to mortgage their land and now they can’t even get the refund from the government only because that evil doctor’s greed, their whole life is destroyed. And I  know it very well but it is not the only case, it happens everyday with several people but we only hear about a very few stories. I am not saying that all of the doctors are bad at BHU or it is happening only at BHU but its a fact which can’t be ignored. Its happening everywhere in India, everyday with so many people. I hope that with more and more transparency and online system this problem will solve in future but it seems like it is not going to be solved some time soon, we will have to suffer with this system in future as well but wish to see it completely changed before I die. I would like to thank to Mr. Modi for starting such project, I know how hard it is for him to solve this problem of corruption but I have a hope. At least he started something and we all know he is doing his best to fight corruption, Thanks for being what he is! Peace.

New Paper article

Quality medicines at affordable prices

सितम्बर २१०६ में मैंने एक लेख था कुंदन के किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में जिसमे इस बात का भी जिक्र किया था की कैसे ट्रांसप्लांट होने के बाद उसका दवा का खर्च लगभग 12,000 प्रति महीना है जो की कुंदन जैसे विद्यार्थी जिसका परिवार गरीबी रेखा से नीचे वाले वर्ग से आता है उसके लिए लगभग लगभग नामुमकिन सा था. शुरू के कुछ महीनो तक तो किसी तरह उसके दवा के खर्च का व्यवस्था हो गया लेकिन एक समय के बाद नहीं हो पा रहा था. कुंदन भी अपने परिवार पर दबाव नहीं बनाना चाहता था क्योकि उसको अच्छी तरह से मालूम था की पिता जी के पास भी अब कुछ बचा नहीं है. घर पर जो थोड़ा बहुत खेती की जमीन बिक गयी इलाज के दौरान और उसके ऊपर से दूसरे लोगों से कर्ज लेना पड़ा अलग. इस वजह से कुंदन अपने दवा में कटौती करने लगा, दो दवा बहुत ज्यादा जरूरी थी उसकी को खरीदता था बाकी नहीं लेता था जो की उसके लिए बहुत बड़ी परेशानी को दावत देने के सामान था.

उसको डॉक्टर शुरू में हर महीने हॉस्पिटल बुलाये थे जो की बाद में हर तीन महीने में एक बार कर दिया गया लेकिन पिछले 6 महीने से वो दिल्ली भी नहीं गया था क्योकि दिल्ली जाने तक का पैसा नहीं था. इस बीच वो इतना परेशान हो गया था की मेरे पास कई बार आया और बोला की कोई पार्ट टाइम नौकरी दिलवा दीजिये। कुंदन बहुत मेधावी छात्र है और पढ़ना चाहता है लेकिन पढाई और काम दोनों एक साथ नहीं कर सकता। अगर पढ़ाई पर ध्यान लगाएगा तो काम नहीं कर पायेगा और अगर काम नहीं किया तो पैसे नहीं आएंगे दवा खरीदने के लिए. और अगर काम करता है तो पढ़ाई नहीं कर सकता। दूसरी बहुत बड़ी दिक्कत ये की शारीरिक श्रम वाला काम नहीं कर सकता क्योकि किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद डॉक्टर मना कर चुके है. इसलिए हमसे बोला की अगर रात का भी 4 -5 घंटे का काम मिल जाए तो कर लेगा ताकि दिन में क्लास जा सके. मुझे कुछ समझ में ना रहा था की कहाँ भेजे उसे, कैसे उसका मदद कर सकें।

इसी बीच हमको एक ख्याल आया भारत सरकार की एक नयी स्कीम के बारे में जिसका नाम है प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र। इसको नरेंद्र मोदी जी ने शुरू करवाया था और कई बार उनको इस बारे में बात करते सुने थे. बस केवल इतना पता था की यहाँ गंभीर रोगों में लगने वाली दवाएं जो की बहुत महँगी होती है सस्ते दाम पर मिलती है लेकिन कभी किसी जन औषधि केंद्र पर व्यक्तिगत रूप न ही गए थे न ही किसी को जानते थे जो की वहां से दवा खरीदता हो. खैर, हम कुंदन को बोले नौकरी के सोचते हैं लेकिन इधर बीच एक बार जन औषधि केंद्र पर जा के अपने दवा का दाम पता करो. शुरू में कुंदन थोड़ा असहज लगा, बोला की वो जहाँ से दवा लेता है वो लोग भी उसको छूट देते हैं और उसके बाद उसकी दवा 12,000 की पड़ती है, बहुत होगा तो जन औषधि केन्द्र् से उसको 2,000 और सस्ती दवा मिल जाएगी, फिर भी वो 10,000 रुपया महीने का दवा नहीं खरीद सकता।

शुरू में लगभग एक हफ्ते नहीं गया वो लेकिन जब गया तो उसको विश्वास नहीं हुआ की जो दवा वो 3,000  खरीदता था वो उसको जन औषधि केंद्र में मात्र 142 (मात्र एक सौ बयालीस ) रूपये में मिली। उसको विश्वास नहीं हो रहा था तो वो तुरंत अपने डॉक्टर को गंगा राम हॉस्पिटल दिल्ली फ़ोन किया और उनको दवा का नाम और सब कुछ बताया और वो भी बोले के बिंदास हो कर खरीदो, कोई फर्क नहीं है. कुंदन वो दवा खरीदा और सीधा मेरे पास आया बिल ले के. इतना ज्यादा उत्साहित और खुश लग रहा था की बयां नहीं किया जा सकता, हमको बिल दिखाया और बोला की चूँकि उसका काफी बचत हुआ है इसलिए अब वो अगले एक सप्ताह में ही दिल्ली भी जाएगा डॉक्टर से मिलने क्योकि पिछले 6 महीने से नहीं जा पाया था. लेकिन एक दिक़्क़त ये हुई की कुंदन को उसकी सारी दवा नहीं मिल पायी।

कुंदन की दवा का बिल

दुकानदार बोला की चूँकि बनारस में अबतक किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा किसी हॉस्पिटल में नहीं है इसलिए यहाँ कोई ट्रांसप्लांट से सम्बंधित दवा नहीं मंगाता। शुरू में वो लोग मंगवाते थे लेकिन डिमांड नहीं के बराबर होने के कारण उनको दवा वापस करना पड जा रहा था. इसलिए बाकी की दवाएं उसको या तो लखनऊ या दिल्ली में मिलेंगी। वो दवा की पूरी लिस्ट देखा और बोला की ये सारी दवाएं लगभग 3 से 4,000 रूपये महीने में मिल जाएंगी जो की बहुत बड़ी बचत होगी। लेकिन हार्ट, कैंसर और बाकी असाध्य रोगों की सारी महंगी दवाएं उसके दूकान पर बाजार से 3 से 4 गुना काम दाम में उपलब्ध थी. जो दवाएं जन औषधि केंद्र से सरकार उपलब्ध करवा रही है उसमे और मार्किट में बिकने वाली दवाओं में केवल इतना अंतर है की जन औषधि केंद्र वाली दवाएं जेनेरिक दवाएं है. दवा वही होती है बस कंपनी का नाम अलग होगा और दूसरा कोई अंतर नहीं।

आमिर खान एक शो आता था स्टार टीवी पर जिसका नाम था सत्य मेव जयते, याद है? उसका एक एपिसोड इसी विषय पर था की कैसे डॉक्टरों और दवा बनाने वाली कंपनियों की मिलीभगत से महँगी दवा बेचने के खेल चल रहा है. बड़ी बड़ी कम्पनिया डॉक्टरों को मोटा कमीशन देकर अपने कंपनी की दवा लिखवाते है जिसका भुगतान असल में ग्राहक ही करता है. उस एपिसोड के बाद याद होगा आप को की कितना बवाल हुआ था, डॉक्टर लोग कोर्ट तक चले गए थे. खैर, ये खेल किसी से छुपा नहीं है, सब लोग जानते हैं इसके बारे में. लेकिन अब इसका इलाज प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के जरिये संभव हुआ है. मेरा ये लेख लिखने के पीछे केवल एक ही मकसद था की जो लोग पैसे की तंगी के कारण इलाज वहां नहीं कर सकते वो इस सुविधा का बिना हिचक इस्तेमाल करें। जेनेरिक दवाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए सत्य मेव जयते का एपिसोड शेयर कर रहे हैं, पूरा देखिये और तस्सली मिले तो इस सुविधा का लाभ उठाइये। ये सुविधा शुरू कराने के लिए मोदी जी का ह्रदय से धन्यवाद, ये गरीबों की बहुत मदद करेगी।

 

Hall of Fame certificate by Tripadvisor

It has been 5 years since I got Groovy Tours registered on Tripadvisor which has been giving most of my business. Depending on the rating given by the travelers and their reviews every year certain businesses are given Certificate of Excellence but if someone gets Certificate of Excellence continuously for five years then they become eligible for Hall of Fame certificate. I have been getting certificate of excellence ever since I registered my business on Tripadvisor in the year 2014 and since I have been getting certificate of excellence continuously every year, this year I have been given Hall of Fame certificate which is the most satisfying thing for me as the manager of the business. What could be the better and more satisfying feeling that your services being appreciated by your customers. Thanks to all the people who gave me opportunity to serve them.

Here it is my Hall of Fame certificate

Boat ride in Varanasi

Ganga Cruise Alaknanda

Tourism is life line of Varanasi and biggest attraction for tourists has always been Kashi Vishwanath Temple and the river Ganga. I can’t even think of any tourist of pilgrim coming to Varanasi without having desire to at least visit Kashi Vishwanath Temple and have at least one boat ride on the river. As per the data of UP Tourism board nearly 7 million tourists had visited Varanasi in the 2017 and the number is growing every year. But because of bad infrastructure Varanasi was not able to impress tourists and pilgrims as much as it should have done. The city was a complete mess until 2014. Luckily Varanasi elected Mr. Narendra Modi as the member of parliament from Varanasi and he is also the current Prime Minister of India now.

Ganga Cruise Alaknanda

During his tenure of past 4 years this city has changed a lot. They worked a lot for cleanliness under Swatch Bharat Mission which had huge positive impact on the city. Mr. Modi always talks about tourism hence he personally took interest in developing tourism facilities in Varanasi. And the most recent change is Ganga Cruise. We had small boats (hand rowing and engine run both) which can handle 4-6 people. Hand rowing boats are fine but the there was a huge increase in number of engine boats which had basically ruined the whole experience. It is very loud and since it is run on a diesel engine it creates huge pollution. People want to have peace when they go on a boat but these boats were very bad.

Ganga Cruise Alaknanda

I have had so many guests who were disappointed with the boats. If fact they were willing to pay extra to have a bigger, safer and comfortable boat but it was not possible at all because we did not have any other option. But finally we have Ganga cruise as well which will leave positive impact on tourism in Varanasi and will definitely attract more tourists. The government has started this new cruise named Alaknanda and I have been told that it is a double-decker cruise ship which will be able to carry more than 100 passengers at any given time. The liner is equipped with 60 luxurious sofas to make your voyage incredibly comfortable and have eco-friendly bio-toilets. It also has an extensively equipped kitchen which will serve both veg and non-veg dishes to please your taste buds.

Ganga Cruise Alaknanda

The lower deck of the cruise is fully air-conditioned and has a small stage which boosts all the needed multimedia functionality. To keep you connected to the modern world it also offers free on-board WiFi. The upper deck is a restaurant and will let you enjoy the view while hogging on your favorite food! The cruise is even equipped with numerous safety features and an on-board lifeguard for emergencies. When Cabinet Minister Mr. Nitin Gadhkari proposed the idea of Motorways, many People mocked him….but look at it….it is indeed happening…..it is the future.

 

 

I am back

I know that I have not been able to write any new post since 2016, actually it all started in the year 2014 but it was all because of some personal and social reasons which I do not want to disclose but I am so happy that somehow I am back again where I belonged to, where I can write anything I want without getting any kind of censorship from Facebook or any other social networking platform I use. The years between 2014 and 2018 have been really hard for me which kept me away from writing. I thought about writing all the time but never seemed to be possible…… well in any case now I feel like I am back again and I hope to keep writing again about whatever I interests me. Jai Hind.

Kidney Transplant at Ganga Ram Hospital

ये लेख मेरे छोटे भाई सामान कुंदन के किडनी ट्रांसप्लांट से सम्बंधित मेरे व्यक्तिगत अनुभव से प्रेरित है. कुंदन कुशीनगर का रहने वाला है लेकिन बनारस में रहा कर बीएचयू में पढाई कर रहा था. उसको सरदर्द की पुरानी बिमारी थी जो की एक दिन उभड़ गयी और चुकी वो बीएचयू का विद्यार्थी था और वहीँ हॉस्टल में रहता था इसलिए वो बीएचयू में ही बीएचयू के विद्यार्थियों के लिए चलने वाले डिस्पेंसरी गया दवा लेने के लिए. डॉक्टर ने उसका साधारण जांच किया जिसमे ब्लड प्रेशर बहुत गड़बड़ था. तो उसको उसको और भी कई जांच लिख दिया, जब रिजल्ट आया तो उसमे एक बहुत खतरनाक चीज सामने आयी और वो था क्रिएटिनिन लेवल जो की ५.१ पहुंच चुका था जबकि इसे होना चाहिए 0.5 से 1-1.2 के बीच जिससे ये तो अंदाज़ लग गया की किडनी से सम्बंधित कोई बहुत गंभीर बीमारी है.

उसका किडनी से सम्बंधित दूसरा टेस्ट किया गया तो मालूम चला की एक किडनी पूरी तरह ख़राब हो चुकी थी और दूसरी भी ८०% तक ख़राब हो चुकी थी. इसी बीच अभी दवा इलाज शुरू भी नहीं हुआ था की कुंदन के एक आँख की रेटिना सरक गयी और उसको एक आँख से दिखना बंद हो गया. एक २२ साल के लड़के के लिए ये जमीन फट जाने जैसी खबर थी. तुरंत उसके घर वालो को बुलाया गया. बीएचयू में इलाज भी शुरू हुआ लेकिन उसकी हालत दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी. कुछ दिनों तक तो बीएचयू ने खर्चा उठाया लेकिन उसके बाद वो भी हाँथ पीछे खींच लिए. दूसरी सबसे बड़ी परेशानी थी की बीएचयू में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं थी, उसके पास केवल एक रास्ता था की वो या तो दिल्ली जाए या फिर लखनऊ जहाँ उसको बहुत पैसे की जरूरत पड़ती लेकिन परिवार के पास कुछ नहीं था.

असल में उन लोगों के पास गरीबी रेखा से नीचे वाला राशन कार्ड था. घर पर थोड़ा बहुत जमीन था खेती वाला और पिता जी भी बेरोजगार। अब सबसे बड़ी समस्या थी की पैसा कहाँ से आएगा। बीएचयू ने एक मदद किया की वो बोले की जबतक पैसे का व्यवस्था नहीं हो जाता तबतक मरीज को हम अपने यहाँ रखेंगे फ्री में लेकिन पैसे का व्यवस्था तो करना ही पड़ेगा। दिल्ली में गंगा राम हॉस्पिटल में पता करने पर मालूम चला की केवल ट्रांसप्लांट का ही खर्चा लगभग ७.५ लाख रुपया होगा। बीएचयू ने ये भी वादा किया वो लोग भी थोड़ा पैसा देंगे लेकिन पूरा नहीं कर पाएंगे। एक ही रास्ता बचा था की सरकारी मदद ली जाए लेकिन उसमे समय लगता है और समय की बहुत बड़ाई दिक़्क़त थी क्योकि कुंदन की तबियत दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी. उसके क्लास के पढ़ने वाले बच्चे बीएचयू में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, उनकी ये मांग थी की पूरा खर्चा बीएचयू उठाये लेकिन बीएचयू ने सीधे मना कर दिया था. एक समय तो ऐसा भी आ गया था जब कुंदन अपने आपको हॉस्पिटल के कमरे में बंद कर लिया था, बोला या तो मेरा इलाज करो या तो मुझे जान से मार दो.

उसको डायलिसिस पर रखा गया था. लेकिन लगभग लगभग सभी नसें बेकार हो चुकी थी. पहले हाँथ से  करते थे, फिर पैर से करना शुरू किये और फिर अंततः गर्दन के पास से करते थे. जब गर्दन के पास से करना शुरू  किये तो नस में पाइप लगवाने के लिए कुंदन को लखनऊ जाना पड़ता था. सोच कर भी शरीर कांप जाता है की कैसे उतनी बिमारी में वो बनारस से लखनऊ केवल एक पाइप डलवाने के लिए जाता था. मुझे अभी भी याद है की एक बार हम उसको अपने घर के पास देखे चाय की दूकान के बाहर खड़ा था, जो की मेरे लिए एक झटका सा था क्योकि उस समय उसकी तबियत इतनी ज्यादा खराब थी की सभी लोग लगभग मान चुके थे की अब कुंदन बचेगा नहीं। और उसको हॉस्पिटल से  बाहर देखना मेरे लिए बहुत बड़े अचरज का विषय था.

खैर, हम तुरंत उसके पास गए लेकिन उसकी हालत देखकर अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. पूरा शरीर जबरदस्त रूप से सूज गया था और पीला पड चुका था. वो बात कर रहा था हमसे लेकिन क्या बोल रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन सुनाई उसको सब कुछ साफ़ साफ पड रहा था. तभी देखे कुंदन के पीछे उसके पिता जी भी खड़े थे. हम उनसे पूछे की कुंदन हॉस्पिटल से बाहर कैसे निकला तो वो बताये की वो खुद अपने से सारा पाइप निकाल कर हॉस्पिटल से बाहर आ गया था. मुझे अच्छी तरह से मालूम है की वो इतना ज्यादा कष्ट झेल चूका था की किसी तरह से बस उस नरक से बाहर आना चाहता था. समय बीतता जा रहा था लेकिन पैसे की व्यवस्था नहीं  हो पा रही थी. किसी तरह से उसके घर वाले, उसके मित्र और बाकी जो मेरे परिवार से हो सकता था हम लोग कर रहे थे. उसके मित्र लोग बीएचयू के अंदर और शहर में अलग अलग जगह भिक्षाटन कर के तकरीबन १.५ लाख रुपया जुटाए।

लेकिन उतने पैसे से कुछ नहीं होने वाला था और कुंदन की हालत भी दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी. अब हमलगों के पास केवल एक ही विकल्प था की जितना जल्दी से जल्दी हो सके सरकारी मदद की व्यवस्था की जाए. सरकारी मदद के लिए दो विकल्प थे- सांसद निधि और विधायक निधि। सांसद निधि से मदद मिलने में समय ज्यादा लगता है क्यंकि सबकुछ पहले दिल्ली फिर लखनऊ और फिर जिले स्तर पर पहुँचता है इसलिए लेट हो जाता है जबकि विधायक निधि सीधे लखनऊ से पास हो जाता है. इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए मैंने अपने बड़े भाई समान नन्दलाल मास्टर जी को फ़ोन किया जो की एक समाजसेवक है और लोक समिति नामक संस्था चलाते हैं. उन्होंने मुझे तुरंत संदीप पांडेय जी से मिलने के लिए बोला जो की उस समय बीएचयू में आईटी विभाग में पढ़ा रहे थे.

संदीप भईया से मेरा भी पहले कई बार मिलना हुआ था इसलिए कोई दिक़्क़त नहीं हुई. उन्होंने भी यही सलाह दी की राज्य सरकार से मदद लिया जाए. असल में उन्होंने ही मदद के लिए प्रार्थना पत्र अपने हांथो से लिखा और सारा कागज एकत्रित कर के ये बोला की अब जिलाधिकारी कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं. आवेदन हो गया और अंततः लखनऊ से पैसा भी पास हो गया और वो पैसा सीधा गंगा राम हॉस्पिटल के खाते में कुंदन के इलाज के नाम पर ट्रांसफर कर दिया गया था. लेकिन अब दूसरी दिक़्क़त ये सामने आयी की वहाँ पर तारीख नहीं मिल रही थी. और इसी बीच लेट होने की वजह से वो पैसा वापस से राज्य सरकार के खाते में ट्रांसफर हो गया. जिसको दोबारा से बहुत चक्कर लगाने के बाद फिर से राज्य सरकार से गंगा राम में ट्रांसफर करवाया गया. अंततः ट्रांसप्लांट की डेट आ गयी और कुंदन को बीएचयू से गंगा राम हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया.

इस बीच कुंदन बीएचयू में ९ महीने तक अपने जीवन के लिए संघर्ष करता रहा. उसके कष्ट को बयान कर पाना मुश्किल है, केवल वो लड़का ही अपना कष्ट समझ सकता है. खैर, बीएचयू में ९ महीने रहने का उसका बिल १३ लाख रुपया आया जिसमे दवा, डायलिसीस और वार्ड के कमरे का किराया सब कुछ जुड़ा हुआ था. बीएचयू ने उसके सारे खर्चे को माफ़ कर दिया और उसके अलावा १,६०,००० रुपया भी किया। लेकिन इस मदद से भी उसका इलाज पूरा नहीं हो पता क्योकि सरकार से केवल ४,५०,००० रूपये की मदद मिली थी जबकि गंगा राम में ट्रांसप्लांट का ही खर्च केवल ७,५०,००० रुपया था. इस बीच हम भी अपने दोस्तों से कुछ मदद लिए और अलोक, सना भाई, योगेश और कुछ एक विदेशी मित्रों ने भी कुंदन के लिए कुछ मदद किया जिससे उसका ऊपरी खर्च कुछ हद तक सपोर्ट हो सके.

गंगा राम हॉस्पिटल में ही कुंदन के पिता जी की मुलाक़ात किसी एनजीओ के एजेंट से हुई जो इनको बोला की वो कुंदन का बाकी खर्चा किसी संस्था से दिला देगा और ट्रांसप्लांट के बाद दवा में होने वाले खर्च में भी मदद करेगा जो की बहुत बड़े सुकून की खबर थी. इसके बदले वो कुंदन के पिता जी से कुंदन के इलाज सम्बंधित सारे कागज लिया और कुछ दिन बाद बाद इन लोगों को कुछ पैसा भी ला कर दिया। पूरा उसने ७०,००० रुपया दिया था लेकिन बाद में मालूम चला की वो एक ऐसे गैंग का एजेंट था जो कुंदन जैसे निर्धन परिवार वालों की मजबूरी का फायदा उठा कर अलग अलग जगहों से पैसा लेता है और उसका थोड़ा हिस्सा मरीज को देगा और बाकी अपने खुद खा जाता है. कुछ हफ़्तों बाद वो कुंदन के पिता जी पर दबाव बनाने लगा दिए हुए ७०,००० वापिस करने के लिए लेकिन इन लोगों के वापस करने के लिए कुछ था ही नहीं तो देते कहाँ से.

खैर, अंततः कुंदन का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ, उसके पिता जी की एक किडनी लेकर। कुंदन को ३ महीने हॉस्पिटल में रखा गया था जिस बीच उसकी हर तीसरे दिन डायलिसिस की जाती थी. लेकिन इस बीच वो शुगर का मरीज हो गया और एक कान से सुनाई देना बंद कर दिया। डॉक्टर ने बोला की ये ट्रांसप्लांट का साइड एफेक्ट है जो की पूरी तरह ख़त्म तो नहीं होगा लेकिन धीरे धीरे कम हो जायेगा। अंततः कुंदन के डिस्चार्ज होने का समय आ गया लेकिन फिर वही दिक़्क़त की पैसा नहीं था हॉस्पिटल का बिल चुकाने के लिए. लेकिन गंगा राम हॉस्पिटल ने मानवता का परिचय देते हुए कुंदन के डायलिसिस का बिल माफ़ कर दिया और किसी तरह कुंदन हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर बनारस वापस आया.

डिस्चार्ज होने के बाद कुंदन को शुरू में हर महीने में एक बार दिल्ली जाना पड़ता था अपने डॉक्टर से मिलने के लिए जो की बाद में ३ महीने में एक बार कर दिया गया है. आज कुंदन स्वस्थ है लेकिन उसको बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है जैसे की शारीरिक श्रम का काम नहीं करना चाहिए, धुल, धुँआ, प्रदूषण से बचना है. साफ़ सफाई की विशेष ख्याल रखना है ताकि किसी तरह के कोई भी इन्फेक्शन पनपने की संभावना न हो, शुगर की वजह से खान-पान का विशेष ख्याल रखना है और हाँ, दवा जिंदगी भर चलेगी। शुरू में तो लगभग ३५-४० गोली रोज खानी पड़ती थी जो की समय के हिसाब से धीरे धीर काम होंगी लेकिन कुछ दवाएं जिंदगी भर खाना पड़ेगा। और ये दवाएं सस्ती भी नहीं है, इनका खर्च लगभग १२,००० रुपया महीना पड़ता है. जैसे ईश्वर इतना कठिन समय में मदद किये वैसे ही दवा की भी व्यवस्था हो जाएगी यही प्रार्थना है. ॐ शांति।

इन्फेक्शन का पता चला- 10 जुलाई 2015 

बीएचयू में इलाज चला- 23 अप्रैल 2016 तक 

फिर गंगा राम में इलाज चला – अगस्त २०१६ तक