कोरोना का ईलाज Treatment of Corona

इस पोस्ट को लिखने के पीछे मेरा केवल एक धेय है मैं कोविड पॉजिटिव से नेगेटिव होने तक के अपने अनुभव को लोगों के साथ साझा कर सकूं जिससे दूसरों की मदद हो सके. लेकिन मैं एक बात स्पष्ठ कर देना चाहता हूँ की मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ, और न ही इस पोस्ट के माध्यम से मैं किसी को कोरोना के ईलाज के सम्बन्ध में कोई सलाह दे रहा हूँ. हर किसी का शरीर अलग होता है तथा एक ही बीमारी अलग अलग लोगों के साथ अलग अलग तरह से व्यवहार करती है. इसलिए कृपया इस पोस्ट को केवल मेरा अनुभव ही समझे और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं. हाँ एक व्यक्तिगत सलाह जरूर देंगे की यदि आपको जरा भी आशंका है की आप कोरोना पॉजिटिव हो सकते हैं तो बिना देरी के अपना टेस्ट करवाएं एवं डॉक्टर से उचित सलाह ले कर ही कोई भी काम करें.

मेरे लिए कोरोना पॉजिटिव होना एक आम इंसान के कोरोना पॉजिटिव होने से बहुत ज्यादा खतरनाक था क्योकि मैं अपने लीवर ट्रांसप्लांट के बाद से immunosuppressive दवाएं लेता हूँ जो मेरे शरीर के रोग से लड़ने की क्षमता को कमजोर रखता है. जहाँ कोरोना के ईलाज के लिए सभी डॉक्टर केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखना ही इस महामारी का ईलाज बताते हैं वहीँ मजबूरन मैं अपनी रोक प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करने की दावा लेता था. और इस दवा के लेने की वजह से मुझे ये मालूम था की मेरे लिए कोरोना से लड़ना किसी दुसरे आम इन्सान की तुलना में थोडा कठिन होने वाला था. कोरोना जांच की रिपोर्ट आने के पहले ही मुझे इस बात का अंदाज़ हो चूका था की मैं कोरोना पॉजिटिव था क्योकि मेरे सूंघने की शक्ति बिल्कुल क्षीण हो चुकी थी.

जैसे ही मुझे ये अहसाह हुआ था मैं कोरोना पॉजिटिव हो सकता हूँ मैंने सर्वप्रथम अपने आपको बाकी के परिवार के सदस्यों से पूरी तरह से अलग कर लिया था. जब रिपोर्ट आ गयी उसके बाद सबसे पहले मैंने अपने लीवर के डॉक्टर को ILBS हॉस्पिटल में सूचना दी. उन्होंने बोला की immunosuppressive दवाएं बंद कर दो क्योकि कोरोना के ईलाज में रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी चाहिए और मेरी दवाएं उसको कमजोर रखने के लिए हैं. ये मेरे लिए बहुत विचित्र स्थिति थी क्योकि यदि immunosuppressive दवाएं बंद होती हैं तो मेरे ट्रांसप्लांट हुए लीवर के लिए घातक है और यदि वो दवाएं लेते रहे तो कोरोना के ईलाज के लिए घातक.

उन्होंने मुझे कोरोना के ईलाज से सम्बंधित कुछ दवाएं भी दी. मेरे डॉक्टर का कहना था की कोरोना के लिए कोई विशेष दवा नहीं बनी है, व्यक्ति का खुद का शरीर ही कोरोना से लड़ता है. साथ में जो दवाएं दी जाती हैं वो केवल शरीर की आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए दी जाती हैं जैसे मल्टीविटामिन, जिंक और विटामिन C. मुझे मात्र यही 3 दवाएं दी गयी थी, इसके अलावा कुछ भी नहीं. इसके साथ में मुझे दूध-हल्दी, दिन में कम से कम 4 बार भाप लेना, प्राणायाम, सांस लेने से सम्बंधित दूसरे व्यायाम और स्पाईरोमीटर से दिन में 3-4 बार व्यायाम करने के लिए बोला गया. साथ में अपना पल्स रेट और ऑक्सीजन लेवल भी देखते रहने को बोला गया.

मेरे डॉक्टर ने बोला की घर पर आराम करना है, संतुलित भोजन करना है और यदि सांस लेने में तकलीफ होती है तो तुरंत किसी पास के कोविड हॉस्पिटल में एडमिट हो जाना है. डॉक्टर ने ये भी बोला की यदि ऑक्सीजन लेवल 95 से नीचे होता है तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. मुझे ऑक्सीजन लेवल का अंदाज़ पहले से था क्योकि अपने लीवर के ईलाज के समय मैं काफी समय तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर था और मुझे इस बात का अंदाज़ था की अगर ऑक्सीजन लेवल 90 तक भी पहुच जाता है तो उसमे हॉस्पिटल की तुरंत जरूरत नहीं है. इसके अलावा कुछ स्वास से सम्बंधित व्यायाम भी मुझे काफी पहले से मालूम थे जिसको करने से शरीर का ऑक्सीजन लेवल बढाने में मदद मिलती है जैसे की Proning या कुछ योग एवं प्राणायाम.

प्रोनिंग एक प्रकार की बैठने, लेटने और सांस लेने की विशेष अवस्था है जिसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा सांस फेफड़ों में भरी जा सके ताकि शरीर का ऑक्सीजन लेवल बना रहे. प्रोनिंग और योग द्वारा ऑक्सीजन लेवल बढाने की प्रक्रिया लगभग एक सी ही है बस करने का तरीका थोडा अलग है. प्रोनिंग में भी एक विशेष अवस्था में बैठ कर या लेट कर फेफड़ों में ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन भरने की बात की जाती है और योग प्राणायाम तो पूरी तरह से सांस भरने और छोड़ने पर आधारित प्रक्रिया है. लेकिन इनमे से किसी को भी करने के पहले मुझे ऐसा लगता है की किसी विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए. योग प्राणायाम से ऑक्सीजन लेवल बनाये रखने के लिए बाबा रामदेव भी कई आसनों और प्राणायाम बताते हैं जिसको इस विडियो में देख सकते हैं-

मेरे पॉजिटिव होने के कुछ दिन बाद से एक एक कर के मेरे घर के सभी सदस्य कोविड पॉजिटिव हो गए और हम सभी लोगों ने वहीँ दवाइयां ली जो मेरे डॉक्टर ने मुझे बताई थी और वही दिनचर्या का पालन किया जैसा डॉक्टर ने बोला था. मेरे बड़े भाई ने बनारस के किसी डॉक्टर के द्वारा बताई गयी दवाइयां ली थी जो मेरे दवाइयों से थोड़ी अलग थी. बनारस में डॉक्टर मल्टी विटामिन, जिंक, विटामिन C के साथ में Doxycycline, Montelukast and Fexofenadine और Ivermectin भी दे रहे थे जबकि मैंने केवल मल्टीविटामिन, जिंक और विटामिन C ही लिया था. अंततः 15 दिन बाद मैंने अपना RT PCR टेस्ट करवाया और रिपोर्ट नेगेटिव आ गई और एक एक कर के परिवार के सभी सदस्य भी नेगेटिव हो गए.

पॉजिटिव से नेगेटिव होने के इस दौर में जो महत्वपूर्ण बातें नोटिस किया जिससे मुझे बहुत मदद मिली वो थी-

  • जैसे ही शंका हुआ मैंने तुरंत अपना टेस्ट करवा लिया जिससे की मुझे ये पता चल गया की मुझे कोविड का इन्फेक्शन है जिससे मुझे मेरा ईलाज सही समय पर शुरू करने में मदद मिली. आज सभी का ये मानना है की यदि कोविड के इन्फेक्शन का पता सही समय पर चल जाये तो इससे लड़ाई आसान हो जाती है. नहीं तो अगर ये इन्फेक्शन बढ़ गया तो फिर दुनिया जानती है की इसकी कोई दवा नहीं है. इसलिए अगर जरा सा भी शंका हो की कोविड का इन्फेक्शन हो सकता है तो तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए और डॉक्टर के निर्देशन में अपना ईलाज शुरू कर देना चाहिए.
  • अपने आपको सबसे अलग कर लेना और घर पर भी रहना बहुत महत्वपूर्ण है क्योकि कोविड शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है और यदि उस समय कोई घर के बाहर आता जाता है या दूसरे व्यक्तियों के संपर्क में आता है तो उसे दूसरा इन्फेक्शन भी आने का खतरा होता है और साथ ही साथ वो अपना इन्फेक्शन दूसरे को भी दे देता है क्योकि कोरोना बहुत ही जबरदस्त संक्रामक वायरस है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बहुत आसानी से फ़ैल जाता है. कई वैज्ञानिक तो यहाँ तक बोल रहे है की ये हवा से फैलने वाला वायरस है इसलिए अपने आपको आइसोलेट कर लेने में ही समझदारी है.
  • भाप लेना बहुत मदद किया – मेरे डॉक्टर ने मुझे दिन में 3-4 बार भाप लेने के लिए बोला था जिसका मुझे बहुत फायदा महसूस हुआ. शायद इसी वजह से मुझे खांसी या खरास की दिक्कत नहीं हुई. भाप लेने के लिए शुरू के 2-3 दिन मैंने घर पर ही बड़े बर्तन में पानी गर्म कर के भाप लिया लेकिन उसके बाद एक छोटी मशीन खरीद लिया जिससे काम और आसान हो गया. भाप लेने सम्बंधित भी कुछ नियम है जिसका पालन करना चाहिए.
  • स्पाईरोमीटर – स्पाईरोमीटर एक छोटा सा यन्त्र होता है जिसका इस्तेमाल फेफड़ों और सांस सम्बंधित व्यायाम करने के लिए किया जाता है. इसमें बंद चौकोर डिब्बे में 3 बाल होती हैं जिससे एक पाइप जुडी होती है. उसी पाइप से सांस अन्दर खीचने पर वो बालें ऊपर की और उठती हैं. जितनी जोर से सांस खींचा जायेगा उतनी ज्यादा बाल ऊपर उठती है. ये फेफड़ों के लिए बहुत ही बेहतरीन व्यायाम है. मेरे डॉक्टर ने मुझे ये व्यायाम दिन में 4-5 बार करने के लिए बोला था.
  • दूध हल्दी का सेवन करना हमेशा से ही अच्छा माना गया है जिसको आयुर्वेद और अंग्रेजी डॉक्टर दोनों लोग मान्यता देते हैं. दूध हल्दी से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है जो की कोरोना से लड़ने का एकमात्र उपाय है. इसका सेवन करने की सलाह भी मुझे मेरे डॉक्टर ने दिया था. इसके साथ में हल्का, सुपाच्य और स्वास्थ्कारी भोजन (घर का बना हुआ ज्यादा तेल, घी, मसाले वाला नहीं) करने की सलाह दी गयी थी.

कुल मिलाजुला कर मेरा अनुभव ये रहा की यदि कोरोना का इन्फेक्शन सही समय पर पता चल जाये और यदि व्यक्ति डॉक्टर की सलाह माने तो इस इन्फेक्शन को ख़त्म करने में बहुत मदद मिल सकती है. इसलिए यदि जरा सी भी शंका हो तो तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए. दूसरी बहुत महत्वपूर्ण बात ये की इस इन्फेक्शन को लेकर घबराना नहीं चाहिए. मैंने देखा है की लोग कोरोना का नाम सुनते ही बहुत ज्यादा डर जाते हैं. जहाँ तक हो सके सकारात्मक रहने का प्रयास करना चाहिए, घर पर हैं तो अपने पसंद की फिल्म देखिये, किताबें पढ़िए….कोई भी काम जो बिना किसी दूसरे से मिले जुले हो सकता है. जहाँ तक हो सके हॉस्पिटल से दूरी बनाने में ही समझदारी है.

मुझे ऐसा लगता है की यदि मेरे जैस आदमी जिसका मात्र 5 महीने पहले लीवर ट्रांसप्लांट हुआ हो, जो immunosupressive दवाएं लेता हो अगर वो इस वायरस को परास्त कर सकता है तो कोई भी व्यक्ति सही निर्णय लेकर कोरोना को परास्त कर सकता है. जैसा की मैंने शुरू में लिखा है की ये लेख मेरा व्यक्तिगत अनुभव मात्र है और इससे ज्यादा कुछ नहीं. मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ ना ही मुझे कोरोना या उससे सम्बंधित कोई वैज्ञानिक जानकारी है. इसलिए इस लेख को एक सच्ची कहानी से ज्यादा कुछ भी न समझे. कुछ भी परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और उनके निर्देशानुसार ही अपना इलाज करें.

Quality medicines at affordable prices

सितम्बर २१०६ में मैंने एक लेख था कुंदन के किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में जिसमे इस बात का भी जिक्र किया था की कैसे ट्रांसप्लांट होने के बाद उसका दवा का खर्च लगभग 12,000 प्रति महीना है जो की कुंदन जैसे विद्यार्थी जिसका परिवार गरीबी रेखा से नीचे वाले वर्ग से आता है उसके लिए लगभग लगभग नामुमकिन सा था. शुरू के कुछ महीनो तक तो किसी तरह उसके दवा के खर्च का व्यवस्था हो गया लेकिन एक समय के बाद नहीं हो पा रहा था. कुंदन भी अपने परिवार पर दबाव नहीं बनाना चाहता था क्योकि उसको अच्छी तरह से मालूम था की पिता जी के पास भी अब कुछ बचा नहीं है. घर पर जो थोड़ा बहुत खेती की जमीन बिक गयी इलाज के दौरान और उसके ऊपर से दूसरे लोगों से कर्ज लेना पड़ा अलग. इस वजह से कुंदन अपने दवा में कटौती करने लगा, दो दवा बहुत ज्यादा जरूरी थी उसकी को खरीदता था बाकी नहीं लेता था जो की उसके लिए बहुत बड़ी परेशानी को दावत देने के सामान था.

उसको डॉक्टर शुरू में हर महीने हॉस्पिटल बुलाये थे जो की बाद में हर तीन महीने में एक बार कर दिया गया लेकिन पिछले 6 महीने से वो दिल्ली भी नहीं गया था क्योकि दिल्ली जाने तक का पैसा नहीं था. इस बीच वो इतना परेशान हो गया था की मेरे पास कई बार आया और बोला की कोई पार्ट टाइम नौकरी दिलवा दीजिये। कुंदन बहुत मेधावी छात्र है और पढ़ना चाहता है लेकिन पढाई और काम दोनों एक साथ नहीं कर सकता। अगर पढ़ाई पर ध्यान लगाएगा तो काम नहीं कर पायेगा और अगर काम नहीं किया तो पैसे नहीं आएंगे दवा खरीदने के लिए. और अगर काम करता है तो पढ़ाई नहीं कर सकता। दूसरी बहुत बड़ी दिक्कत ये की शारीरिक श्रम वाला काम नहीं कर सकता क्योकि किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद डॉक्टर मना कर चुके है. इसलिए हमसे बोला की अगर रात का भी 4 -5 घंटे का काम मिल जाए तो कर लेगा ताकि दिन में क्लास जा सके. मुझे कुछ समझ में ना रहा था की कहाँ भेजे उसे, कैसे उसका मदद कर सकें।

इसी बीच हमको एक ख्याल आया भारत सरकार की एक नयी स्कीम के बारे में जिसका नाम है प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र। इसको नरेंद्र मोदी जी ने शुरू करवाया था और कई बार उनको इस बारे में बात करते सुने थे. बस केवल इतना पता था की यहाँ गंभीर रोगों में लगने वाली दवाएं जो की बहुत महँगी होती है सस्ते दाम पर मिलती है लेकिन कभी किसी जन औषधि केंद्र पर व्यक्तिगत रूप न ही गए थे न ही किसी को जानते थे जो की वहां से दवा खरीदता हो. खैर, हम कुंदन को बोले नौकरी के सोचते हैं लेकिन इधर बीच एक बार जन औषधि केंद्र पर जा के अपने दवा का दाम पता करो. शुरू में कुंदन थोड़ा असहज लगा, बोला की वो जहाँ से दवा लेता है वो लोग भी उसको छूट देते हैं और उसके बाद उसकी दवा 12,000 की पड़ती है, बहुत होगा तो जन औषधि केन्द्र् से उसको 2,000 और सस्ती दवा मिल जाएगी, फिर भी वो 10,000 रुपया महीने का दवा नहीं खरीद सकता।

शुरू में लगभग एक हफ्ते नहीं गया वो लेकिन जब गया तो उसको विश्वास नहीं हुआ की जो दवा वो 3,000  खरीदता था वो उसको जन औषधि केंद्र में मात्र 142 (मात्र एक सौ बयालीस ) रूपये में मिली। उसको विश्वास नहीं हो रहा था तो वो तुरंत अपने डॉक्टर को गंगा राम हॉस्पिटल दिल्ली फ़ोन किया और उनको दवा का नाम और सब कुछ बताया और वो भी बोले के बिंदास हो कर खरीदो, कोई फर्क नहीं है. कुंदन वो दवा खरीदा और सीधा मेरे पास आया बिल ले के. इतना ज्यादा उत्साहित और खुश लग रहा था की बयां नहीं किया जा सकता, हमको बिल दिखाया और बोला की चूँकि उसका काफी बचत हुआ है इसलिए अब वो अगले एक सप्ताह में ही दिल्ली भी जाएगा डॉक्टर से मिलने क्योकि पिछले 6 महीने से नहीं जा पाया था. लेकिन एक दिक़्क़त ये हुई की कुंदन को उसकी सारी दवा नहीं मिल पायी।

कुंदन की दवा का बिल

दुकानदार बोला की चूँकि बनारस में अबतक किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा किसी हॉस्पिटल में नहीं है इसलिए यहाँ कोई ट्रांसप्लांट से सम्बंधित दवा नहीं मंगाता। शुरू में वो लोग मंगवाते थे लेकिन डिमांड नहीं के बराबर होने के कारण उनको दवा वापस करना पड जा रहा था. इसलिए बाकी की दवाएं उसको या तो लखनऊ या दिल्ली में मिलेंगी। वो दवा की पूरी लिस्ट देखा और बोला की ये सारी दवाएं लगभग 3 से 4,000 रूपये महीने में मिल जाएंगी जो की बहुत बड़ी बचत होगी। लेकिन हार्ट, कैंसर और बाकी असाध्य रोगों की सारी महंगी दवाएं उसके दूकान पर बाजार से 3 से 4 गुना काम दाम में उपलब्ध थी. जो दवाएं जन औषधि केंद्र से सरकार उपलब्ध करवा रही है उसमे और मार्किट में बिकने वाली दवाओं में केवल इतना अंतर है की जन औषधि केंद्र वाली दवाएं जेनेरिक दवाएं है. दवा वही होती है बस कंपनी का नाम अलग होगा और दूसरा कोई अंतर नहीं।

आमिर खान एक शो आता था स्टार टीवी पर जिसका नाम था सत्य मेव जयते, याद है? उसका एक एपिसोड इसी विषय पर था की कैसे डॉक्टरों और दवा बनाने वाली कंपनियों की मिलीभगत से महँगी दवा बेचने के खेल चल रहा है. बड़ी बड़ी कम्पनिया डॉक्टरों को मोटा कमीशन देकर अपने कंपनी की दवा लिखवाते है जिसका भुगतान असल में ग्राहक ही करता है. उस एपिसोड के बाद याद होगा आप को की कितना बवाल हुआ था, डॉक्टर लोग कोर्ट तक चले गए थे. खैर, ये खेल किसी से छुपा नहीं है, सब लोग जानते हैं इसके बारे में. लेकिन अब इसका इलाज प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के जरिये संभव हुआ है. मेरा ये लेख लिखने के पीछे केवल एक ही मकसद था की जो लोग पैसे की तंगी के कारण इलाज वहां नहीं कर सकते वो इस सुविधा का बिना हिचक इस्तेमाल करें। जेनेरिक दवाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए सत्य मेव जयते का एपिसोड शेयर कर रहे हैं, पूरा देखिये और तस्सली मिले तो इस सुविधा का लाभ उठाइये। ये सुविधा शुरू कराने के लिए मोदी जी का ह्रदय से धन्यवाद, ये गरीबों की बहुत मदद करेगी।

 

Kidney Transplant at Ganga Ram Hospital

ये लेख मेरे छोटे भाई सामान कुंदन के किडनी ट्रांसप्लांट से सम्बंधित मेरे व्यक्तिगत अनुभव से प्रेरित है. कुंदन कुशीनगर का रहने वाला है लेकिन बनारस में रहा कर बीएचयू में पढाई कर रहा था. उसको सरदर्द की पुरानी बिमारी थी जो की एक दिन उभड़ गयी और चुकी वो बीएचयू का विद्यार्थी था और वहीँ हॉस्टल में रहता था इसलिए वो बीएचयू में ही बीएचयू के विद्यार्थियों के लिए चलने वाले डिस्पेंसरी गया दवा लेने के लिए. डॉक्टर ने उसका साधारण जांच किया जिसमे ब्लड प्रेशर बहुत गड़बड़ था. तो उसको उसको और भी कई जांच लिख दिया, जब रिजल्ट आया तो उसमे एक बहुत खतरनाक चीज सामने आयी और वो था क्रिएटिनिन लेवल जो की ५.१ पहुंच चुका था जबकि इसे होना चाहिए 0.5 से 1-1.2 के बीच जिससे ये तो अंदाज़ लग गया की किडनी से सम्बंधित कोई बहुत गंभीर बीमारी है.

उसका किडनी से सम्बंधित दूसरा टेस्ट किया गया तो मालूम चला की एक किडनी पूरी तरह ख़राब हो चुकी थी और दूसरी भी ८०% तक ख़राब हो चुकी थी. इसी बीच अभी दवा इलाज शुरू भी नहीं हुआ था की कुंदन के एक आँख की रेटिना सरक गयी और उसको एक आँख से दिखना बंद हो गया. एक २२ साल के लड़के के लिए ये जमीन फट जाने जैसी खबर थी. तुरंत उसके घर वालो को बुलाया गया. बीएचयू में इलाज भी शुरू हुआ लेकिन उसकी हालत दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी. कुछ दिनों तक तो बीएचयू ने खर्चा उठाया लेकिन उसके बाद वो भी हाँथ पीछे खींच लिए. दूसरी सबसे बड़ी परेशानी थी की बीएचयू में किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं थी, उसके पास केवल एक रास्ता था की वो या तो दिल्ली जाए या फिर लखनऊ जहाँ उसको बहुत पैसे की जरूरत पड़ती लेकिन परिवार के पास कुछ नहीं था.

असल में उन लोगों के पास गरीबी रेखा से नीचे वाला राशन कार्ड था. घर पर थोड़ा बहुत जमीन था खेती वाला और पिता जी भी बेरोजगार। अब सबसे बड़ी समस्या थी की पैसा कहाँ से आएगा। बीएचयू ने एक मदद किया की वो बोले की जबतक पैसे का व्यवस्था नहीं हो जाता तबतक मरीज को हम अपने यहाँ रखेंगे फ्री में लेकिन पैसे का व्यवस्था तो करना ही पड़ेगा। दिल्ली में गंगा राम हॉस्पिटल में पता करने पर मालूम चला की केवल ट्रांसप्लांट का ही खर्चा लगभग ७.५ लाख रुपया होगा। बीएचयू ने ये भी वादा किया वो लोग भी थोड़ा पैसा देंगे लेकिन पूरा नहीं कर पाएंगे। एक ही रास्ता बचा था की सरकारी मदद ली जाए लेकिन उसमे समय लगता है और समय की बहुत बड़ाई दिक़्क़त थी क्योकि कुंदन की तबियत दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी. उसके क्लास के पढ़ने वाले बच्चे बीएचयू में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, उनकी ये मांग थी की पूरा खर्चा बीएचयू उठाये लेकिन बीएचयू ने सीधे मना कर दिया था. एक समय तो ऐसा भी आ गया था जब कुंदन अपने आपको हॉस्पिटल के कमरे में बंद कर लिया था, बोला या तो मेरा इलाज करो या तो मुझे जान से मार दो.

उसको डायलिसिस पर रखा गया था. लेकिन लगभग लगभग सभी नसें बेकार हो चुकी थी. पहले हाँथ से  करते थे, फिर पैर से करना शुरू किये और फिर अंततः गर्दन के पास से करते थे. जब गर्दन के पास से करना शुरू  किये तो नस में पाइप लगवाने के लिए कुंदन को लखनऊ जाना पड़ता था. सोच कर भी शरीर कांप जाता है की कैसे उतनी बिमारी में वो बनारस से लखनऊ केवल एक पाइप डलवाने के लिए जाता था. मुझे अभी भी याद है की एक बार हम उसको अपने घर के पास देखे चाय की दूकान के बाहर खड़ा था, जो की मेरे लिए एक झटका सा था क्योकि उस समय उसकी तबियत इतनी ज्यादा खराब थी की सभी लोग लगभग मान चुके थे की अब कुंदन बचेगा नहीं। और उसको हॉस्पिटल से  बाहर देखना मेरे लिए बहुत बड़े अचरज का विषय था.

खैर, हम तुरंत उसके पास गए लेकिन उसकी हालत देखकर अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. पूरा शरीर जबरदस्त रूप से सूज गया था और पीला पड चुका था. वो बात कर रहा था हमसे लेकिन क्या बोल रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन सुनाई उसको सब कुछ साफ़ साफ पड रहा था. तभी देखे कुंदन के पीछे उसके पिता जी भी खड़े थे. हम उनसे पूछे की कुंदन हॉस्पिटल से बाहर कैसे निकला तो वो बताये की वो खुद अपने से सारा पाइप निकाल कर हॉस्पिटल से बाहर आ गया था. मुझे अच्छी तरह से मालूम है की वो इतना ज्यादा कष्ट झेल चूका था की किसी तरह से बस उस नरक से बाहर आना चाहता था. समय बीतता जा रहा था लेकिन पैसे की व्यवस्था नहीं  हो पा रही थी. किसी तरह से उसके घर वाले, उसके मित्र और बाकी जो मेरे परिवार से हो सकता था हम लोग कर रहे थे. उसके मित्र लोग बीएचयू के अंदर और शहर में अलग अलग जगह भिक्षाटन कर के तकरीबन १.५ लाख रुपया जुटाए।

लेकिन उतने पैसे से कुछ नहीं होने वाला था और कुंदन की हालत भी दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी. अब हमलगों के पास केवल एक ही विकल्प था की जितना जल्दी से जल्दी हो सके सरकारी मदद की व्यवस्था की जाए. सरकारी मदद के लिए दो विकल्प थे- सांसद निधि और विधायक निधि। सांसद निधि से मदद मिलने में समय ज्यादा लगता है क्यंकि सबकुछ पहले दिल्ली फिर लखनऊ और फिर जिले स्तर पर पहुँचता है इसलिए लेट हो जाता है जबकि विधायक निधि सीधे लखनऊ से पास हो जाता है. इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए मैंने अपने बड़े भाई समान नन्दलाल मास्टर जी को फ़ोन किया जो की एक समाजसेवक है और लोक समिति नामक संस्था चलाते हैं. उन्होंने मुझे तुरंत संदीप पांडेय जी से मिलने के लिए बोला जो की उस समय बीएचयू में आईटी विभाग में पढ़ा रहे थे.

संदीप भईया से मेरा भी पहले कई बार मिलना हुआ था इसलिए कोई दिक़्क़त नहीं हुई. उन्होंने भी यही सलाह दी की राज्य सरकार से मदद लिया जाए. असल में उन्होंने ही मदद के लिए प्रार्थना पत्र अपने हांथो से लिखा और सारा कागज एकत्रित कर के ये बोला की अब जिलाधिकारी कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं. आवेदन हो गया और अंततः लखनऊ से पैसा भी पास हो गया और वो पैसा सीधा गंगा राम हॉस्पिटल के खाते में कुंदन के इलाज के नाम पर ट्रांसफर कर दिया गया था. लेकिन अब दूसरी दिक़्क़त ये सामने आयी की वहाँ पर तारीख नहीं मिल रही थी. और इसी बीच लेट होने की वजह से वो पैसा वापस से राज्य सरकार के खाते में ट्रांसफर हो गया. जिसको दोबारा से बहुत चक्कर लगाने के बाद फिर से राज्य सरकार से गंगा राम में ट्रांसफर करवाया गया. अंततः ट्रांसप्लांट की डेट आ गयी और कुंदन को बीएचयू से गंगा राम हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया.

इस बीच कुंदन बीएचयू में ९ महीने तक अपने जीवन के लिए संघर्ष करता रहा. उसके कष्ट को बयान कर पाना मुश्किल है, केवल वो लड़का ही अपना कष्ट समझ सकता है. खैर, बीएचयू में ९ महीने रहने का उसका बिल १३ लाख रुपया आया जिसमे दवा, डायलिसीस और वार्ड के कमरे का किराया सब कुछ जुड़ा हुआ था. बीएचयू ने उसके सारे खर्चे को माफ़ कर दिया और उसके अलावा १,६०,००० रुपया भी किया। लेकिन इस मदद से भी उसका इलाज पूरा नहीं हो पता क्योकि सरकार से केवल ४,५०,००० रूपये की मदद मिली थी जबकि गंगा राम में ट्रांसप्लांट का ही खर्च केवल ७,५०,००० रुपया था. इस बीच हम भी अपने दोस्तों से कुछ मदद लिए और अलोक, सना भाई, योगेश और कुछ एक विदेशी मित्रों ने भी कुंदन के लिए कुछ मदद किया जिससे उसका ऊपरी खर्च कुछ हद तक सपोर्ट हो सके.

गंगा राम हॉस्पिटल में ही कुंदन के पिता जी की मुलाक़ात किसी एनजीओ के एजेंट से हुई जो इनको बोला की वो कुंदन का बाकी खर्चा किसी संस्था से दिला देगा और ट्रांसप्लांट के बाद दवा में होने वाले खर्च में भी मदद करेगा जो की बहुत बड़े सुकून की खबर थी. इसके बदले वो कुंदन के पिता जी से कुंदन के इलाज सम्बंधित सारे कागज लिया और कुछ दिन बाद बाद इन लोगों को कुछ पैसा भी ला कर दिया। पूरा उसने ७०,००० रुपया दिया था लेकिन बाद में मालूम चला की वो एक ऐसे गैंग का एजेंट था जो कुंदन जैसे निर्धन परिवार वालों की मजबूरी का फायदा उठा कर अलग अलग जगहों से पैसा लेता है और उसका थोड़ा हिस्सा मरीज को देगा और बाकी अपने खुद खा जाता है. कुछ हफ़्तों बाद वो कुंदन के पिता जी पर दबाव बनाने लगा दिए हुए ७०,००० वापिस करने के लिए लेकिन इन लोगों के वापस करने के लिए कुछ था ही नहीं तो देते कहाँ से.

खैर, अंततः कुंदन का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ, उसके पिता जी की एक किडनी लेकर। कुंदन को ३ महीने हॉस्पिटल में रखा गया था जिस बीच उसकी हर तीसरे दिन डायलिसिस की जाती थी. लेकिन इस बीच वो शुगर का मरीज हो गया और एक कान से सुनाई देना बंद कर दिया। डॉक्टर ने बोला की ये ट्रांसप्लांट का साइड एफेक्ट है जो की पूरी तरह ख़त्म तो नहीं होगा लेकिन धीरे धीरे कम हो जायेगा। अंततः कुंदन के डिस्चार्ज होने का समय आ गया लेकिन फिर वही दिक़्क़त की पैसा नहीं था हॉस्पिटल का बिल चुकाने के लिए. लेकिन गंगा राम हॉस्पिटल ने मानवता का परिचय देते हुए कुंदन के डायलिसिस का बिल माफ़ कर दिया और किसी तरह कुंदन हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर बनारस वापस आया.

डिस्चार्ज होने के बाद कुंदन को शुरू में हर महीने में एक बार दिल्ली जाना पड़ता था अपने डॉक्टर से मिलने के लिए जो की बाद में ३ महीने में एक बार कर दिया गया है. आज कुंदन स्वस्थ है लेकिन उसको बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है जैसे की शारीरिक श्रम का काम नहीं करना चाहिए, धुल, धुँआ, प्रदूषण से बचना है. साफ़ सफाई की विशेष ख्याल रखना है ताकि किसी तरह के कोई भी इन्फेक्शन पनपने की संभावना न हो, शुगर की वजह से खान-पान का विशेष ख्याल रखना है और हाँ, दवा जिंदगी भर चलेगी। शुरू में तो लगभग ३५-४० गोली रोज खानी पड़ती थी जो की समय के हिसाब से धीरे धीर काम होंगी लेकिन कुछ दवाएं जिंदगी भर खाना पड़ेगा। और ये दवाएं सस्ती भी नहीं है, इनका खर्च लगभग १२,००० रुपया महीना पड़ता है. जैसे ईश्वर इतना कठिन समय में मदद किये वैसे ही दवा की भी व्यवस्था हो जाएगी यही प्रार्थना है. ॐ शांति।

इन्फेक्शन का पता चला- 10 जुलाई 2015 

बीएचयू में इलाज चला- 23 अप्रैल 2016 तक 

फिर गंगा राम में इलाज चला – अगस्त २०१६ तक