कैंसर का ईलाज

मैंने कई बार सोचा की मुझे हिंदी में भी कुछ लेख लिखना चाहिए लेकिन पता नहीं क्यों मैं ये काम कभी नहीं कर पाया I अन्ततः मुझे एक ऐसा सुनहरा अवसर मिला है, जिसे असल में मैं अवसर से ज्यादा अपना दायित्व समझता हूँ, जब मैं अपने आपको ये लेख लिखने से रोक नहीं सका I इस लेख के द्वारा मैं कैंसर के ईलाज सम्बन्धी अपना अनुभव साझा करना चाहता हूँ I असल में मेरी माता जी को ब्रैस्ट कैंसर (स्तन का कैंसर) है जिसका ईलाज अगस्त २०१५ से निरंतर चल रहा है. इस दौरान मैंने बनारस में बी एच यू से लगाये दिल्ली के एम्स, बम्बई के टाटा मेमोरियल एवं इनके अलावा कई और सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों का चक्कर काटा I अन्ततः मुझे एक सही दिशा मिली और मेरी माता जी का ईलाज आज सफलतापूर्वक चल रहा है I इस लेख को लिखने के पीछे मेरा केवल एक ही मक्सद है की जिस तरह मैं परेशान हुआ, और मुझे ये भी मालूम है की हज़ारों लाखों लोग मेरी तरह है, वैसा किसी और को परेशान न होना पड़े I

मुझे पता है की आज प्रतिदिन कैंसर से पीड़ित रोगियों की संख्या बढती जा रही है और हमारे देश भारत में, ख़ास कर के, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में इस रोग के ईलाज की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है I मेरी माता जी से सर्वप्रथम जुलाई में अपने छाती के उपरी हिस्से में एक छोटी सी गाँठ को महसूस किया I उनको न कोई दर्द था और न ही कोई दूसरी परेशानी I हम लोगों ने सोचा की शायद कोई साधारण सी दिक्कात होगी और हमने उन्हें एक महिला के डॉक्टर के पास भेजा I उस महिला डॉक्टर ने बोला की हमे    बी एच यू में कैंसर विभाग में दिखाना चाहिए I जैसा की हम सब लोग जानते हैं की बी एच यू पूरी तरह से दुर्व्यवस्था से भरा हुआ हॉस्पिटल है इसलिए हम वहां नहीं जाना चाहते थे I बी एच यू  के ही एक रिटायर डॉक्टर है जिनका नाम है डॉक्टर शुक्ला, हमने उनको पहले दिखाना उचित समझा I डॉक्टर शुक्ला ने बोला की हमलोगों को पहले मेमोग्राफी नाम का एक एक्स-रे करना पड़ेगा जिससे की गाँठ की सही स्थिति का पता चल पायेगा I

मेमोग्राफी करने के बाद जब हमलोग वापस डॉक्टर शुक्ला के पास गए तो उन्होंने हमे दो विकल्प दिया- या तो हम बी एच यू  में ऑपरेशन करा लें और वही पर किमो भी कराये या तो वो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में अपने संरक्षण में ऑपरेशन करवाएंगे और बी एच यू  में किमो I उनके कहने का साफ़ मतलब था की ये केस कैंसर का हो सकता है I कैंसर नाम का शब्द सुन कर ही हम लोग अन्दर से एकदम डर गए थे, समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाए I इसी बीच हमारे एक पडोसी, जो की बी एच यू के कई डॉक्टरों को व्यक्तिगत रूप से जानते थे, मदद के लिए आगे आये I उन्होंने हमे बी एच यू के कैंसर विभाग में कई डॉक्टरों से मिलवाया I बी एच यू के डॉक्टर लोगों ने कुछ एक टेस्ट कराने के लिए कहा जिनमे से एक था FNAC I ये टेस्ट कैंसर के सेल्स की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है I FNAC के रिपोर्ट में ये बात स्पष्ठ हो गयी की मेरी माता जी को शरुआती दौर का कैंसर था I ये सुन कर तो मेरी रूह काँप गयी, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा था की आगे क्या किया जाये I

बी एच यू के डॉक्टर्स का कहना था की हो सकता है दोनों छातियों को पूरी तरह से निकालना पड़े और उसके बाद किमो और रेडिएशन (जिसको हम देसी भाषा में सेकाई भी कहते है) करना पड़े I मुझे अभी भी इस बात पे विश्वास नहीं हो रहा था की मेरे परिवार में किसी को कैंसर हुआ है I मैंने बनारस में कई और प्राइवेट डॉक्टर्स से संपर्क किया लेकिन लगभग सभी के सभी एक ही बात कहते थे I बनारस में कैंसर के ईलाज से सम्बंधित बी एच यू के बाद यदि किसी दूसरे हॉस्पिटल का नाम यदि कोई जानता है तो वो है रेलवे का कैंसर हॉस्पिटल I मुझसे कई लोगों ने बोला की मुझे एक बार वहाँ के डॉक्टर्स से भी मिलना चाहिए I लेकिन एक नाम जो मेरे दिमाग में हमेशा से था वो था मुंबई का टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल I मैंने ये निर्णय ले लिया था की चाहे कुछ भी हो जाये हम बिना टाटा मेमोरियल के डॉक्टर्स से सलाह लिए बिना कोई ईलाज नहीं शुरू करेंगे I एक दिन मैं रेलवे हॉस्पिटल जाने की तैयारी कर रहा था की तभी मेरा एक मित्र आया माता जी का हाल-चाल पूछने के लिए और मैंने उसे बताया की आज मैं रेलवे के हॉस्पिटल जा रहा हूँ I

मैंने उसे टाटा मेमोरियल जाने के संभावनाओं के बारे में भी बताया I उसने मुझसे पुछा की टाटा कब जाना चाहते हो, मैंने बोला कल I तब उसने बोला की अगर कल जाना चाहते तो आज ही क्यों नहीं, एक दिन व्यर्थ करने का क्या मतलब? मुझे उसकी बात बहुत सही लगी और मैं तुरंत मुंबई चला गया I मुंबई में मेरे कुछ बचपन के दोस्त, अलोक और योगेश, रहते है और मैं उन्ही लोगों के भरोसे मुंबई जाने वाला था I मैंने उनलोगों को फ़ोन किया और उन्होंने भी बोला की तुरंत चले आओ I मुंबई पहुचने के बाद योगेश ने बोला की वो व्यक्तिगत रूप से किसी डॉक्टर को टाटा में जानता है और मुझे उनसे मिलवायेगा I अन्ततः मैं टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल पंहुचा और वहां पहुचने के बाद मुझे मालूम चला की जिस डॉक्टर को मेरा मित्र जानता था वो मुह के कैंसर के डॉक्टर थे तो इसलिए मेरा उनसे मिलने का कोई औचित्य नहीं था I खैर, टाटा मेमोरियल शुरू से ही जबरदस्त व्यवस्थित हॉस्पिटल लगा I असल में मैंने कभी भी उस तरह का हॉस्पिटल नहीं देखा था I

सब कुछ निहायत व्यवस्थित था, लोग एक दूसरे का मदद करने वाले थे, अगर आप किसी को कुछ बोले तो लोग सुनाने को तैयार थे नहीं तो अगर कोई बी एच यू चला जाए तो जैसे लगता है की हम वह भीख मांगने गए हो I टाटा मेमोरियल की दो इमारतें हैं- एक पुरानी जहाँ आज कल ज्यादातर टेस्ट वगैरह होते है और दूसरी है नयी इमारत जहाँ पर ज्यादातर OPD हैं I मैं इमारत में था और वहां सर्वप्रथम मैं पूछ-ताछ काउंटर पे गया I उन्होंने ने बी एच यू की सारी रिपोर्ट्स देखीं और मुझसे पुछा की क्या मैं केवल डॉक्टर से सलाह लेना चाहता हूँ या मुझे टाटा में ही ईलाज भी करवाना है I शुरू में मैंने बोला की मैं केवल सलाह लेना चाहता हूँ तो मेरा पंजीकरण करके मुझे ब्रैस्ट कैंसर विभाग में डॉक्टर के पास सलाह लेने के लिए भेज दिया जिसका फीस पंद्रह सौ रुपया था I OPD में बहुत ज्यादा भीड़ थी लेकिन चूँकि सब कुछ व्यवस्थित था इस वजह से कोई बहुत ज्यादा परेशानी नहीं हुई I

शायद दो-तीन घंटे बाद मेरा नंबर आया और जब मैं डॉक्टर के कमरे में गया तो वह मेरे और डॉक्टर के अलावा और कोई नहीं था I ये बात मुझे बहुत अच्छी लगी नहीं तो बी एच यू और दूसरे सरकारी हॉस्पिटल में हमेशा डॉक्टर्स के अगल बगल चिड़ियाघर सरीखा माहौल रहता है I वहां मौजूद महिला डॉक्टर ने बी एच यू के सारे रिपोर्ट्स को देखा और फिर मेरी माता जी के जीवन के बारे में कई सवाल पूछने लगी I उनमे से कई का उत्तर मुझे नहीं मालूम था तो मैंने तुरंत बनारस फ़ोन कर के उन प्रशनो का जवाब देने का कोशिश किया I अन्ततः डॉक्टर ने मुझसे बोला की मुझे माता जी को मुंबई बुलाना ही पड़ेगा I डॉक्टर का ये कहना था की कुछ परिस्थियों में डॉक्टर केवल रिपोर्ट के आधार पर सलाह दे सकते हैं लेकिन यदि महिलाओं में छाती का कैंसर है तो मरीज को देखना आवश्यक हो जाता है क्योकि डॉक्टर को गाँठ को छु कर महसूस करना जरूरी होता है इसके अलावा स्तन का आकार देखना भी बहुत जरूरी होता है I

मैंने अपनी माता जी को अगले दिन ही मुंबई बुला लिया और उसके अगले दिन टाटा लेकर गया I डॉक्टर ने मेरी माता जी का परिक्षण किया जिसके बाद उन्होंने बोला की इसमें ऑपरेशन तो करना ही पड़ेगा और आगे का ईलाज कुछ टेस्ट हो जाने के बाद पता चलेगा I उन्होंने मुझे दो विकल्प दिए- या तो मैं टाटा मेमोरियल, लोअर परेल में तीन-चार महीने बाद ऑपरेशन कराऊं और या नहीं तो टाटा मेमोरियल का ही एक दूसरा सेण्टर, जो की नवी मुंबई के खार घर इलाके में है, वहां अगले हफ्ते ही करा लूं I वह डॉक्टर्स ने कहा की दोनों सेण्टर एक ही है, दोनों के डॉक्टर्स एक ही है केवल जगह अलग अलग है I उनका कहना था की लोअर परेल में भीड़ ज्यादा होने के कारण एक नया सेण्टर २००२ में नवी मुंबई में भी शुरू किया गया है I शुरुआत में मुझे ये बात समझ में नहीं आई लेकिन बाद में इन्टरनेट पर रिसर्च करने के बाद और कई दूसरे लोगों से पूछने के बाद ये बात तो साफ़ हो गया की दोनों सेण्टर एक ही है I

चूँकि अब ये बात स्पष्ठ हो चुकी थी की हमलोगों को सारा ईलाज टाटा में ही कराना था इसलिए वहां रजिस्ट्रेशन कराना भी जरूरी था I सर्वप्रथम मैं पूछ-ताछ काउंटर पे गया जहाँ उन्होंने मुझे ईलाज और उससे सम्बंधित सभी खर्चों के बारे में जानकारी दिया I टाटा में मरीजो का दो श्रेणियों में पंजीकरण किया जाता है – १- जनरल और २- प्राइवेट I जनरल और प्राइवेट मरीजों का ईलाज एकदम एक ही तरीके से बिना किसी भेदभाव के किया जाता है लेकिन सुविधाओं में और खर्च में अंतर होता है I यदि कोई प्राइवेट श्रेणी में अपना पंजीकरण करता है तो उसका ईलाज जनरल श्रेणी वाले मरीज से तकरीबन दस गुना महंगा होगा I असल में टाटा मेमोरियल में भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग के द्वारा सब्सिडी प्रदान की जाती है जो की प्राइवेट श्रेणी के अंतर्गत आने वाले मरीजों को नहीं मिलती है I उन्होंने बताया की अगर मैं मरीज का पंजीकरण जनरल श्रेणी में करूँगा तो ईलाज का खर्च तकरीबन ३०,००० रुपया होगा और अगर मैं प्राइवेट श्रेणी में पंजीकरण करूँगा तो ईलाज का खर्च तकरीबन २,५०,००० रुपया होगा I

मैंने बहुत सोचने के बाद माता जी का पंजीकरण प्राइवेट श्रेणी में करा दिया I मुझे मालूम था की मेरे लिए ये बहुत बड़ा खर्चा होगा लेकिन फिर भी मैंने यही रास्ता चुना I टाटा हॉस्पिटल के हाल में कई एटीएम सी दिखने वाली मशीन थी जो असल में पंजीकरण करने वाली मशीन थी और सभी लोगों को उस मशीन में अपने से मरीज के सम्बंधित जानकारी डालना जरूरी था I जानकारी डालने के बाद मशीन एक पंजीकरण नंबर दे देती है जिसको ले कर वह काउंटर पर मरीज के साथ जाना होता है और उसी नंबर के आधार पर मरीज का पंजीकरण किया जाता है I सारी जानकारी पूछने के बाद हमलोगों को एक स्मार्ट कार्ड दिया गया जिसे हमेशा साथ में रखना जरूरी होता है चूँकि इसी स्मार्ट कार्ड में मरीज के बारे में सारी जानकारी होती है और इसी स्मार्ट कार्ड में ईलाज का सारा पैसा भी जमा किया जाता है I

इसी बीच ऑपरेशन के डॉक्टर ने हमसे कई टेस्ट कराने के लिए कहा जिनमे से कुछ टेस्ट पहले ही बी एच यू में किये जा चुके थे जिसका रिपोर्ट हमारे पास था लेकिन टाटा के डॉक्टर्स ने बोला की अगर हम टाटा में ईलाज कराना चाहते है तो हमे वहां फिर से सारा टेस्ट कराना पड़ेगा I वो लोग बी एच यू के टेस्ट रिपोर्ट से संतुस्ट नहीं थे और मुझे लगता है की बी एच यू की दुर्व्यवस्था को देखते हुए कोई भी वहां की किसी रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं होगा I हम लोगों ने दोबारा से सारा टेस्ट टाटा में करवाया और रिपोर्ट आने के बाद डॉक्टर से मिल कर खारघर वाले सेण्टर में अगले सप्ताह का ऑपरेशन का डेट ले लिया I ऑपरेशन से पहले मुझे केवल एक बार खारघर जा के वह के डॉक्टर्स से मिलना था जो मैं शायद अगले दिन ही कर लिया I वह के डॉक्टर्स ने मुझसे बोला की ऑपरेशन के एक दिन पहले मरीज को भर्ती करा देना I मुझसे ये भी बताया गया की मरीज को ऑपरेशन के बाद किमो और रेडिएशन देना पड़ सकता है जिसकी सही जानकारी ऑपरेशन के बाद पता चलेगी I

अन्ततः ऑपरेशन के एक दिन पहले हमलोग खारघर पहुच गए, डॉक्टर ने कुछ थोडा बहुत चेकअप किया और बोला की कल सुबह सात बजे हॉस्पिटल आने के लिए I डॉक्टर ने ये भी बोला की ऑपरेशन वाले दिन सुबह कुछ भी नहीं खाना है, पेय पदार्थ ले सकते हैं I सब कुछ ठीक था लेकिन तभी एक बहुत बड़ी दिक्क़त हो गयी की हॉस्पिटल में प्राइवेट वार्ड में कोई भी बेड या कमरा खाली नहीं था I डॉक्टर्स ने बोला की हमलोगों को जनरल वार्ड के गेस्ट हाउस में रात बितानी होगी I सुनने में ये कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन जब हम लोग गेस्ट हाउस में पहुचे तो वहां का नज़ारा देख कर मेरा तो होश ही उड़ गया I वहां पर पहले से ही काफी ऐसे मरीज थे जिनका ऑपरेशन हो चुका था, अभी उनका घाव खुला हुआ था और एक कमरे में आठ बेड लगे हुए थे I सबसे बड़ी दिक्क़त ये थी की उस कमरे की खिड़कियाँ भी बंद की गयी थी ताकि मरीजों को ठंढ न लगे जिसके वजह से कमरे में अजीब तरह की बदबू और घुटन हो रही थी I

वो नज़ारा देख कर कोई भी डर सकता था और मैं ये नहीं चाहता था की मेरी माता जी को भी ऑपरेशन के पहले किसी तरह कोई डर हो I मैंने तुरंत निर्णय किया की मैं किसी हालत में वह रात नहीं गुजारूँगा I भाग्यवश मेरा एक दूसरा बनारस का दोस्त, बाबु, भी उस समय मुंबई में ही था और उसके एक रिश्तेदार खारघर में ही कहीं रहते थे जिनके बारे में बाबु ने मुझे बताया था I मैंने तुरंत बाबु कोई फोन किया और बाबु भी खारघर आ गया और हमलोगों को अपने रिश्तेदार के घर ले गया I भगवान की दया से इन रिश्तेदार का घर भी हॉस्पिटल से ज्यादा दूर नहीं था I उस रात मैं सो नहीं पाया था, रात भर सोचते हुए ही गुजर गया, सूर्योदय हुआ और हमलोग तैयार होकर हॉस्पिटल पहुच गए I डॉक्टर्स ने मुझे पहले ही बताया था की रेडिएशन की जरूरत पड़ सकती है I रेडिएशन भी दो तरह से होता है – १- अंदरूनी रेडिएशन और दूसरा बाहरी रेडिएशन I

अंदरूनी रेडिएशन में डॉक्टर्स ऑपरेशन के समय ही स्तन में एक ट्यूब डाल देते है जिसके सहारे रेडिएशन दिया जाता है लेकिन इसकी संभावना का पता ऑपरेशन के समय ही पड़ता है I असल में हर किसी को बगल में (कांख ) में लसिका गाँठ होती है, जिसे अंग्रेजी में लिम्फ नोड कहते है, और अगर लिम्फ नोड में कैंसर का इन्फेक्शन नहीं हो तो इस परिस्थिति में ट्यूब के द्वारा अंदरूनी रेडिएशन किया जा सकता है और अगर लिम्फ नोड में इन्फेक्शन हो तो इस परिस्थिति में अंदरूनी रेडिएशन की संभावना नहीं होती है और इस इन्फेक्शन का पता केवल ऑपरेशन के दौरान ही चलता है I डॉक्टर्स ने ये भी हमलोगों को बताया था की केवल गाँठ निकालेंगे या पूरा स्तन ये भी ऑपरेशन के समय ही पता चलेगा I खैर, एक हमलोग अपनी बारी का इंतज़ार कर ही रहे थे की तबतक एक डॉक्टर आये और मुझसे बोले की अपने स्मार्ट कार्ड में पैसा डलवा दीजिये I

मैं अपनी माता जी को ऑपरेशन थिएटर के बाहर छोड़ कर कार्ड में पैसा डलवाने चल गया I यहाँ एक और दिक्क़त हुई, मुझे अंदाज़ नहीं था की कितने पैसों की जरूरत पड़ेगी I मेरे पास जेब में शायद २०,००० रूपये थे और बैंक अकाउंट में ३५-४०,००० I मुझसे तुरंत ५०,००० जमा करने के लिए कहा गया और सबसे बड़ी दिक्क़त ये थी की सभी एटीएम एक दिन में २५,००० से ज्यादा रूपये नहीं देते हैं I खैर किसी तरह से मैंने पैसा जमा कर दिया और जब वापस ऑपरेशन थिएटर गया तो मेरी माता जी को पहले ही अन्दर ले जाया चुका था I थोड़ी देर बाद एक डॉक्टर आये और बोले की मेरे माता जी के लिम्फ नोड में इन्फेक्शन है जिसके वजह से अंदरूनी रेडिएशन नहीं हो सकता है I डॉक्टर ने ये भी बताया की चूँकि गाँठ बहुत बड़ी नहीं थी इस वजह से पूरा स्तन हटाये बिना ही ऑपरेशन किया गया है जो सुन के मुझे काफी अच्छा लगा I

डॉक्टर्स ने मेरी माता जी को केवल एक रात हॉस्पिटल में रखा और उसके बाद घर वापस जाने की छुट्टी दे दी I उन्होंने बोला की आगे का सारा ईलाज टाटा मेमोरियल के लोअर परेल वाले हॉस्पिटल में होगा I उनलोगों ने ऑपरेशन के दौरान ही पेट में एक नली लगा दी थी जो एक छोटे से डब्बे से जुडी हुई थी और इस नाली से हमेशा थोडा थोडा खून के रंग का तरल पदार्थ निकलता रहता था I डॉक्टर्स ने हमलोगों से बोला की जितना भी तरल निकलेगा उसे हमे एक जगह लिख कर रखना है और डॉक्टर को दिखाना है I ऑपरेशन के अगले दिन ही हमे लोअर परेल वाले हॉस्पिटल जाने के लिए भी बोला गया जहाँ एक व्यायाम से सम्बंधित कार्यशाला में मरीज को ले कर जाना था I ये कार्यशाला प्रतिदिन हॉस्पिटल में आयोजित की जाती है लेकिन उसमे वही लोग भाग ले सकते हैं जिनका ऑपरेशन हुआ हो I वो कार्यशाला मुझे शारीरिक व्यायाम से ज्यादा मनोवैज्ञानिक व्यायाम की लगी I

वहां व्यायाम के बारे में बताने वाले कुछ डॉक्टर थे जिन्होंने ऑपरेशन होने के बाद करने वाले व्यायाम के बारे में बताया I उन्होंने ये भी बोला की ऑपरेशन के बाद व्यायाम बहुत ज्यादा जरूरी है नहीं तो ऑपरेशन की अगल बगल वाली नसों में तनाव हो सकता है जो की आगे चल कर बहुत घातक हो सकता है I डॉक्टर्स के अलावा वहां कुछ एक लोग ऐसे भी थे जो अपने कैंसर का ईलाज करा कर साधारण जीवन व्यतीत कर रहे थे I उनलोगों ने भी अपने अनुभवों को मरीजों के साथ साझा किया जिससे की मरीजों का मनोबल बढ़ सके और मुझे व्यक्तिगत रूप से ये बात बहुत ही अच्छी और जरूरी लगी I इसी बीच डॉक्टर्स ने किमो शुरू करने के पहले होने वाले जांचों को लिख दिया जिसमे बोन स्कैन (पूरे शरीर के हड्डी का स्कैन) और सी टी स्कैन भी शामिल था I बाकी और जांचो की तरह ही इनदोनो जांचो के लिए बहुत लम्बी लाइन थी I बोन स्कैन के लिए एक सप्ताह और सी टी स्कैन के लिए पंद्रह दिन बाद का नंबर मिला जो की बहुत बड़ी मुश्किल नहीं थी क्योकि किसी हालत में भी किमो जल शुरू होने वाला नहीं था I

अगर हमलोग चाहते तो बाहर भी दोनों जांच करा सकते थे लेकिन हम लोगों ने टाटा मेमोरियल में ही जांच कराना उचित समझा I इस दौरान ऑपरेशन के वक़्त डॉक्टर्स ने घाव के पास से तरल पदार्थ निकालने के लिए जो नाली लगायी थी वो भी निकाल दी गयी I अबतक सारी रिपोर्ट्स भी आ चुकी थी जिसमे लगभग पंद्रह दिन लगा I अन्ततः हमलोग डॉक्टर्स के पास फिर गए और उन्होंने सारी रिपोर्ट्स का अध्ययन करने के बाद हमे बताया की मेरी माता जी को आठ बार किमो लगेगा जो की हर 21 दिन के अंतर पर दिया जायेगा I किमो एक विशेष प्रकार की दवा होती है जो की कैंसर के रोग में मरीजों को दी जाती है I अलग अलग मरीजों को उनके रोग एवं स्वास्थ के हिसाब से अलग तरह की दवा दी जाती है I मेरी माता जी को दो अलग तरह का किमो दिया जाना था, शरुआत के चार किमो अलग और अंत के चार किमो अलग I मैंने किमो के बारे में कई किस्से सुने थे जिसे लेकर मैं डरा हुआ था I असल में मुझे कोई भी किस्सा याद नहीं था फिर भी मैं बहुत डरा हुआ था I

मेरा सबसे बड़ा दर मेरी माता जी की उम्र को लेकर था I मैंने डॉक्टर से पुछा की क्या एक ६७ साल की महिला को किमो देना सुरक्षित होगा? और डॉक्टर ने बोला की किमो का किसी व्यक्ति के उम्र से कोई लेना देना नहीं होता है, सब कुछ निर्भर करता है व्यक्ति के स्वास्थ पर I अगर व्यक्ति स्वस्थ है तो 80 साल के बुजुर्ग को भी किमो दिया जाता है और अगर व्यक्ति अस्वस्थ है तो 20 साल के नौजवान को भी किमो नहीं दे सकते है और चूँकि मेरी मेरी माता जी का स्वास्थ बिलकुल ठीक था, उनको सुगर या ब्लड प्रेशर तक नहीं था, इसलिए किमो देने में कोई दिक्क़त नहीं है I ये सुनकर हमलोगों को काफी तस्सली हुई I किमो के डॉक्टर्स से हमलोगों को रेडिएशन के डॉक्टर से भी मिलने को बोला I रेडिएशन के डॉक्टर्स ने हमको बताया की किमो ख़त्म होने के बाद 20 रेडिएशन भी देना पड़ेगा जो की हफ्ते में 5 दिन होगा I

सभी कुछ निर्धारित होने के बाद डॉक्टर्स ने हमको दो विकल्प दिए- या तो हमलोग किमो और रेडिएशन दोनों टाटा मेमोरियल में ही कराये या तो वो सारा कुछ तैयार कर देंगे और आगे का किमो हम बी एच यू में ले सकते हैं जिसे सुनते ही मेरी माता जी ने डॉक्टर से हाँथ जोड़ कर बोला की वो टाटा छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती है और डॉक्टर लोग हंस कर बोले की वही लोग सारा ईलाज करेंगे I और वैसे भी मेरी माता जी का रेडिएशन बी एच यू में नहीं हो पता क्यों की रेडिएशन की मशीन भी कुछ अलग अलग तरह की होती है और जो रेडिएशन मेरी माता जी को दिया जाने वाला था वो बी एच यू में उपलब्ध नहीं था I मेरी माता जी को दिया जाने वाला रेडिएशन का नाम था लिनिअर एकसेलरेटर I ये सुविधा हिंदुस्तान में केवल गिने चुने हॉस्पिटल्स में ही उपलब्ध है I

मेरी माता जी इधर बीच बी एच यू से इस वजह से और ज्यादा डर गयी थी क्योकि टाटा मेमोरियल जाते जाते उनकी मुलाकात कई ऐसे लोगों से हुई जो की उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले थे I उनसभी लोगों ने शुरू में अपना ईलाज अपने शहरों में कराया था लेकिन वहां के डॉक्टर्स और हॉस्पिटल ने पूरा केस बिगाड़ दिया जिसके बाद वो बी एच यू गए लेकिन चूँकि हालत पहले ही बहुत ज्यादा ख़राब हो चुकी थी इस वजह से बी एच यू ने भी टाटा मेमोरियल केस भेज दिया I मैं खुद कई ऐसे लोगों से मिला जो हिन्दुस्तान के अलग अलग कोनों से आये हुए थे लेकिन उन सबकी कहानी एक ही थी की उनके शहर के डॉक्टर्स ने सारा केस बिगाड़ दिया I खैर, रेडिएशन के डॉक्टर्स ने ही किमो और रेडिएशन के बाद होने वाले सामान्य दुष्प्रभावों के बारे में भी बता दिया I उन्होंने ने बोला की किमो का प्रभाव अलग अलग व्यक्तियों पर अलग अलग हो सकता है लेकिन जो सबसे सामान्य दुष्प्रभाव है उनमे शरीर में दर्द, पेट से सम्बंधित दिक्क़तें, उलटी होना या महसूस होना और  बाल झाड़ना आम बात है I

अलग अलग किमो भी अलग अलग प्रभाव करता है लेकिन ये सारी दिक्क़तें किमो ख़त्म होने के बाद धीर धीर ठीक हो जाती है, बाल भी दोबारा से २-३ महीने बाद से वापस आने लगते हैं I डॉक्टर्स ने मुझे बताया की पूरा ईलाज होने में तकरीबन 6 महीने का वक़्त लगेगा जो की मेरे लिए बहुत आसान नहीं था I मेरा बड़ा भाई दिल्ली में रहता है और हमलोगों ने सोचा की यदि संभव हो तो आगे का ईलाज दिल्ली में भी करा सकते हैं, इसलिए हमने डॉक्टर्स से 2 दिन का समय माँगा और इस बीच मेरा बड़ा भाई दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में भी संपर्क किया I एम्स में किमो के लिए तकरीबन 6 महीने की लाइन थी और एम्स के डॉक्टरों ने हमसे बोला की यदि हम टाटा मेमोरियल छोड़ कर एम्स में ईलाज कराएँगे तो शायद ये उनके जीवन का पहला ऐसा केस होगा होगा I वहां के डॉक्टर्स का कहना था की जब कोई केस उनसे नहीं संभल पाता है तब वो टाटा मेमोरियल की मदद लेते हैं और यदि हमारे पास रहने की व्यवस्था हो तो हमे टाटा मेमोरियल में ही ईलाज कराना चाहिए I

फिर हमने सोचा की दिल्ली के ही किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में भी संपर्क किया जाये तो हमलोगों ने नॉएडा के एक बहुत प्रसिद्ध हॉस्पिटल, जिसका नाम धरमशिला हॉस्पिटल है, में संपर्क किया I वहां का खर्च सुन कर हमलोगों के होश ही उड़ गए, वहां हर एक चीज़ टाटा मेमोरियल से लगभग दस गुना ज्यादा महंगा था I जो किमो की दावा टाटा में 6-8000 रूपये की थी वही किमो वहां 80,000 रूपये की थी, जो रेडिएशन टाटा में तकरीबन 20-25,000 रूपये में होता उसी रेडिएशन का धरमशिला में 2,50,000 रूपये माँगा जा रहा था I अन्ततः हमलोगों ने निर्णय किया की सारा ईलाज टाटा में ही कराएँगे I हमलोग फिर से टाटा गए और वहां किमो का डेट ले लिए I हमलोगों को किमो के दिन जल्दी सुबह बुलाया गया था क्योकि किमो के दिन सुबह एक खून का साधारण सा जांच होता है जिसको सी बी सी (कॉमन ब्लड काउंट) बोलते हैं, इस टेस्ट के द्वारा खून में सेल्स का पता लगाया जाता है I

टाटा में इसकी रिपोर्ट आने में तकरीबन 4-5 घंटे का समय लग जाता है, फिर उसके बाद वो रिपोर्ट ले कर किमो के डॉक्टर के पास जाना होता है और अगर रिपोर्ट सही है तो वो किमो के लिए लिख देते हैं I फिर उसके बाद टाटा की पांचवी मंजिल पे जाना होता है जहा किमो चढ़ाया जाता है I वहां पर भी नंबर लगाना होता है, टाटा में सोमवार को बहुत ज्यादा भीड़ होती है क्योकि इमरजेंसी को छोड़ कर हॉस्पिटल शनिवार और रविवार को बंद रहता है, फिर भी 2-3 घंटे में नंबर आ ही जाता है I चूँकि अलग अलग मरीजों को उनके रोग के हिसाब से अलग अलग किमो दिया जाता है इसलिए किमो के विभाग में पंजीकरण कराने के बाद दावा लेने के लिए लाइन में लगना पड़ता है और यही ज्यादा समय लगता है I जब दवाई तैयार हो जाती है तो उसको एक मरीज को नसों में चढ़ाया जाता है (जैसे साधारण पानी या खून चढाते हैं ) I

अलग अलग किमो को चढाने में लगने वाला समय भी अलग अलग दवा पर निर्भर करता है I मेरी माता जी को शुरू में जो किमो चढ़ाया गया उसमे केवल 30 से 45 मिनट लगता था I किमो चढ़ने के तुरंत बाद मरीज को घर भेज दिया जाता है लेकिन किमो के बाद होने वाली परेशानियों ( जैसे सर दर्द, उलटी, बुखार, शरीर दर्द इत्यादि ) के लिए डॉक्टर कुछ दावा भी देते है I मेरी माता जी को शुरुआत के 24 घंटो तक कुछ भी अलग महसूस नहीं हुआ लेकिन उसके बाद किमो का प्रभाव समझ में आया I उनके पेट में मरोड़ सा होने लगा, हल्का बुखार भी हो गया और कब्ज भी हुआ लेकिन जब उन्होंने डॉक्टर के द्वारा दी हुई दवाओं को लिया तो ये सारी दिक्क़तें ख़त्म होने लगी I साधारणतयः उनको ये दिक्क़तें किमो के 3-4 दिनों तक रहती है और उसके बाद धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाता है, लेकिन तभी तक अगले किमो का भी दिन आ जाता है I

खैर शुरुआत के चारो किमो ठीक से बीत गया और इस बीच मेरी माता जी किमो लेने के बाद बनारस आ जाती थी और किमो एक दिन पहले फिर मुंबई पहुच जाती थी I पांचवे किमो से दूसरी दवा दी जाने वाली थी और डॉक्टर्स ने हमे बताया की इस किमो में पेट से सम्बंधित कोई ख़ास दिक्क़त नहीं होती है लेकिन शरीर में दर्द इस किमो का बहुत ही साधारण सा दुष्प्रभाव है और ठीक ऐसा ही हुआ भी I जब मेरी माता जी को पांचवा किमो चढ़ाया गया उसके 24 घंटो बाद उनको पूरे शरीर में जबरदस्त दर्द होना शुरू हुआ, ये दर्द कमर से नीचे बहुत ज्यादा था I अन्ततः हमको उन्हें टाटा के इमरजेंसी वार्ड में ले जाना पड़ा जहाँ डॉक्टरों ने कुछ दवा दिया जिससे दर्द धीरे धीरे ठीक हो गया I मेरे माता जी का ईलाज अभी भी चल रहा है, तीन किमो बाकी है और उसके बाद रेडिएशन थेरेपी, पूरा इलाज अप्रैल में ख़त्म होगा और मैं उसके बारे में भी आगे लिखूंगा I

ये लेख लिखने मेरा एक ही मकसद था की यदि किसी को टाटा हॉस्पिटल या कैंसर ईलाज से सम्बंधित कोई जानकारी चाहिए हो तो वो मेरे अनुभव के आधार पर पर अपने ईलाज के बारे में कोई निर्णय ले सके और मुझे उम्मीद है की ये पोस्ट कुछ लोगों की मदद जरूर करेगा I लेकिन एक बात मैं सभी लोगों से बोलना चाहूँगा की यदि आप किसी का भी कैंसर का ईलाज करना चाहते है, और अगर आपके यहाँ अच्छा हॉस्पिटल नहीं है, तो अपना समय मत व्यर्थ कीजिये I सीधा टाटा मेमोरियल जाइए और वो लोग आपका ईलाज करेंगे I कई हॉस्पिटल भटकने के बाद मेरा एक मद है की टाटा मेमोरियल में जो लोग काम करते है वो सच में भगवान् से कम नहीं है I हो सकता है आपको मुंबई में रहने खाने की दिक्क़त होगी लेकिन जीवन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कुछ नहीं होता और एक बात हमसभी लोग जानते हैं की कैंसर का ईलाज जितना जल्दी शुरू हो उतने बेहतर तरह से आदमी ठीक होता है I जय हिन्द I

 

8 thoughts on “कैंसर का ईलाज

  1. Tata me ilaz ke liye apka kul kitne rupey kharch hua ? Maine apne mother in low ko tata medical center kolkata me dikhaya, vaha par unko Brest cancer ke liye start me hi 6 chemo(21 dino par) chadaya gaya. ab operation ke baad ka kharch above 800000 bata rahe hai jo ki hamare liye imposible hai.

  2. Meri maa ko hone TMCH m hi dikhaya h av 1year6months sahi rhi bt ab unke kidney m problem h urine clear nhi aa rha humlog samajh nhi PA rhe ki unka operation kraye ya nhi OPAL hospital k doctors unko pet pr se pipe lagane bol rhe h fir ye v bol rhe ki ye jyada success nhi hoga and wo is conditions m v nhi h ki unko MUMBAI laya ja ske

  3. माता जी की लंबी उम्र के लिए ईश्वर से कामना करता हूँ
    अपके अनुभव साझा करने के लिए धन्यवाद

  4. जनरल में टोटल खर्च कितना पड़ेगा ,, सभी जांच वगैरा के बाद ,, जिसमे सीटी स्कैन भी शामिल हो कृपया बताइये । और अपना नम्बर देने की कृपा करें

  5. Hammer Punjab main to Denver marijuana ko 150000 rupey darker series hai Sri Guru ramdas hospital Amritsar Punjab

  6. Mai aapki mna k liye hmesha prey krugi… Wo hmesha thik rahe… Or mai b bahot pareshan hu kyuki meri mmy k gallbladder me b problem h mgr unka ilaj lucknow cancer hospital me chal rha h…hm log mumbai nhi ja sakte the bus ishliye… Abhi operation nhi hua h but 2 kemo diye ja chuke h

  7. Tata memorial cancer ke ilaj ke liye bilkul sahi jagah hai lekin us hospital par par itna jyada dabav hai ki mumbai se bahar ke logo ke liye ilaj karvana kafi mushkil ho jata hai. vaha ke doctor pura support karte hai lekin pure desh se log vaha aate hai. Nagpur me naya hospital shuru hua hai National cancer Institute naam se. kafi advance aour Tata memorial jitne kharche me hi ilaj hota hai. jyada jankari ke liye jmdixit@gmail.com par mujhse contact kar sakte hai. mai aajkal yaha treatment karva raha hu.

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