सितम्बर २१०६ में मैंने एक लेख था कुंदन के किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में जिसमे इस बात का भी जिक्र किया था की कैसे ट्रांसप्लांट होने के बाद उसका दवा का खर्च लगभग 12,000 प्रति महीना है जो की कुंदन जैसे विद्यार्थी जिसका परिवार गरीबी रेखा से नीचे वाले वर्ग से आता है उसके लिए लगभग लगभग नामुमकिन सा था. शुरू के कुछ महीनो तक तो किसी तरह उसके दवा के खर्च का व्यवस्था हो गया लेकिन एक समय के बाद नहीं हो पा रहा था. कुंदन भी अपने परिवार पर दबाव नहीं बनाना चाहता था क्योकि उसको अच्छी तरह से मालूम था की पिता जी के पास भी अब कुछ बचा नहीं है. घर पर जो थोड़ा बहुत खेती की जमीन बिक गयी इलाज के दौरान और उसके ऊपर से दूसरे लोगों से कर्ज लेना पड़ा अलग. इस वजह से कुंदन अपने दवा में कटौती करने लगा, दो दवा बहुत ज्यादा जरूरी थी उसकी को खरीदता था बाकी नहीं लेता था जो की उसके लिए बहुत बड़ी परेशानी को दावत देने के सामान था.
उसको डॉक्टर शुरू में हर महीने हॉस्पिटल बुलाये थे जो की बाद में हर तीन महीने में एक बार कर दिया गया लेकिन पिछले 6 महीने से वो दिल्ली भी नहीं गया था क्योकि दिल्ली जाने तक का पैसा नहीं था. इस बीच वो इतना परेशान हो गया था की मेरे पास कई बार आया और बोला की कोई पार्ट टाइम नौकरी दिलवा दीजिये। कुंदन बहुत मेधावी छात्र है और पढ़ना चाहता है लेकिन पढाई और काम दोनों एक साथ नहीं कर सकता। अगर पढ़ाई पर ध्यान लगाएगा तो काम नहीं कर पायेगा और अगर काम नहीं किया तो पैसे नहीं आएंगे दवा खरीदने के लिए. और अगर काम करता है तो पढ़ाई नहीं कर सकता। दूसरी बहुत बड़ी दिक्कत ये की शारीरिक श्रम वाला काम नहीं कर सकता क्योकि किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद डॉक्टर मना कर चुके है. इसलिए हमसे बोला की अगर रात का भी 4 -5 घंटे का काम मिल जाए तो कर लेगा ताकि दिन में क्लास जा सके. मुझे कुछ समझ में ना रहा था की कहाँ भेजे उसे, कैसे उसका मदद कर सकें।
इसी बीच हमको एक ख्याल आया भारत सरकार की एक नयी स्कीम के बारे में जिसका नाम है प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र। इसको नरेंद्र मोदी जी ने शुरू करवाया था और कई बार उनको इस बारे में बात करते सुने थे. बस केवल इतना पता था की यहाँ गंभीर रोगों में लगने वाली दवाएं जो की बहुत महँगी होती है सस्ते दाम पर मिलती है लेकिन कभी किसी जन औषधि केंद्र पर व्यक्तिगत रूप न ही गए थे न ही किसी को जानते थे जो की वहां से दवा खरीदता हो. खैर, हम कुंदन को बोले नौकरी के सोचते हैं लेकिन इधर बीच एक बार जन औषधि केंद्र पर जा के अपने दवा का दाम पता करो. शुरू में कुंदन थोड़ा असहज लगा, बोला की वो जहाँ से दवा लेता है वो लोग भी उसको छूट देते हैं और उसके बाद उसकी दवा 12,000 की पड़ती है, बहुत होगा तो जन औषधि केन्द्र् से उसको 2,000 और सस्ती दवा मिल जाएगी, फिर भी वो 10,000 रुपया महीने का दवा नहीं खरीद सकता।
शुरू में लगभग एक हफ्ते नहीं गया वो लेकिन जब गया तो उसको विश्वास नहीं हुआ की जो दवा वो 3,000 खरीदता था वो उसको जन औषधि केंद्र में मात्र 142 (मात्र एक सौ बयालीस ) रूपये में मिली। उसको विश्वास नहीं हो रहा था तो वो तुरंत अपने डॉक्टर को गंगा राम हॉस्पिटल दिल्ली फ़ोन किया और उनको दवा का नाम और सब कुछ बताया और वो भी बोले के बिंदास हो कर खरीदो, कोई फर्क नहीं है. कुंदन वो दवा खरीदा और सीधा मेरे पास आया बिल ले के. इतना ज्यादा उत्साहित और खुश लग रहा था की बयां नहीं किया जा सकता, हमको बिल दिखाया और बोला की चूँकि उसका काफी बचत हुआ है इसलिए अब वो अगले एक सप्ताह में ही दिल्ली भी जाएगा डॉक्टर से मिलने क्योकि पिछले 6 महीने से नहीं जा पाया था. लेकिन एक दिक़्क़त ये हुई की कुंदन को उसकी सारी दवा नहीं मिल पायी।
दुकानदार बोला की चूँकि बनारस में अबतक किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा किसी हॉस्पिटल में नहीं है इसलिए यहाँ कोई ट्रांसप्लांट से सम्बंधित दवा नहीं मंगाता। शुरू में वो लोग मंगवाते थे लेकिन डिमांड नहीं के बराबर होने के कारण उनको दवा वापस करना पड जा रहा था. इसलिए बाकी की दवाएं उसको या तो लखनऊ या दिल्ली में मिलेंगी। वो दवा की पूरी लिस्ट देखा और बोला की ये सारी दवाएं लगभग 3 से 4,000 रूपये महीने में मिल जाएंगी जो की बहुत बड़ी बचत होगी। लेकिन हार्ट, कैंसर और बाकी असाध्य रोगों की सारी महंगी दवाएं उसके दूकान पर बाजार से 3 से 4 गुना काम दाम में उपलब्ध थी. जो दवाएं जन औषधि केंद्र से सरकार उपलब्ध करवा रही है उसमे और मार्किट में बिकने वाली दवाओं में केवल इतना अंतर है की जन औषधि केंद्र वाली दवाएं जेनेरिक दवाएं है. दवा वही होती है बस कंपनी का नाम अलग होगा और दूसरा कोई अंतर नहीं।
आमिर खान एक शो आता था स्टार टीवी पर जिसका नाम था सत्य मेव जयते, याद है? उसका एक एपिसोड इसी विषय पर था की कैसे डॉक्टरों और दवा बनाने वाली कंपनियों की मिलीभगत से महँगी दवा बेचने के खेल चल रहा है. बड़ी बड़ी कम्पनिया डॉक्टरों को मोटा कमीशन देकर अपने कंपनी की दवा लिखवाते है जिसका भुगतान असल में ग्राहक ही करता है. उस एपिसोड के बाद याद होगा आप को की कितना बवाल हुआ था, डॉक्टर लोग कोर्ट तक चले गए थे. खैर, ये खेल किसी से छुपा नहीं है, सब लोग जानते हैं इसके बारे में. लेकिन अब इसका इलाज प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के जरिये संभव हुआ है. मेरा ये लेख लिखने के पीछे केवल एक ही मकसद था की जो लोग पैसे की तंगी के कारण इलाज वहां नहीं कर सकते वो इस सुविधा का बिना हिचक इस्तेमाल करें। जेनेरिक दवाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए सत्य मेव जयते का एपिसोड शेयर कर रहे हैं, पूरा देखिये और तस्सली मिले तो इस सुविधा का लाभ उठाइये। ये सुविधा शुरू कराने के लिए मोदी जी का ह्रदय से धन्यवाद, ये गरीबों की बहुत मदद करेगी।